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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ भगवई - 14-18/२८ जस्स णं भंते देउव्वियसरीरस्स देसबंधे से णं मंते ओरलियसरीरस्स किं बंधए अबंधए गोयमा नो बंधए अबंधए एवं जहेव सव्वबंधेणं भणियं तहेव देसबंधेण वि माणियव्वं जाय कमगस्स, जस्सणं भंते आहारगसरीरस्ससव्वबंधे सेणं मंते ओरालियसरीरस्स किंबंधए अबंधए गोयमा नो बंधए अबंधए एवं वेउब्बियस्स वि तेया कम्माणं जहेव ओरालिएणं समं भणियं तहेव भाणियव्यं जस्स णं भंते आहारगसरीरस्स देसबंधे सेणं भंते ओरालियसरीरस्स किं बंधए अबंधए गोयमा नो बंधए अबंधए एवं जहा आहारगस्स सबबंधेणं भणियं तहा देसबंधेण वि माणियव्यं जाव कम्मगस्स, जस्सणंभंते तेयासरीरस्स देसबंधे सेणं मंते ओरालियसरीरस्स किंबंधए अबंधए गोयमा बंधए वा अबंधए वा, जइ बंधए किं देसबंधए सव्यबंधए गोयमा देसबंधए वा सव्वबंधए वा, वेउब्बियसरीरस्स किं बंधए अबंधए एवं चेव एवं आहारगस्स वि कम्मगसरीरस्स किं बंधए अबंधए गोयमा बंधए नो अबंधए जइ बंधए कि देसबंधए सव्यबंधए गोयमा देतबंधए नो सब्वबंधए जस्स णं भंते कमासरीरस्स देसबंधे से णं भंते ओरालियसरीरस्स किं बंधए अबंधए गोयमा नो बंधए अबंधए जहा तेयगस्स वत्तब्बया भणिया तहा कम्मगस्स वि भाणियब्वा जाव. तेयासरीरस्स [किं बंधए अबंधए गोयमा बंधए नो अबंधए जइबंधइ देसबंधए सव्वबंधए गोयमा देसबंधएनोसन्वबंधए।३५०/-352 (४२९) एएप्ति णं भंते जीवाणं ओरालिय-वेउब्धिय-आहारग-तेयाकम्मासरीरगाणं देसबंधगाणं सब्वबंधगाणं अबंधगाण य कयो कयरेहितो [अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा] विसे साहिया वा गोयमा सन्चत्योवाजीवा आहारगसरीरस्स सब्बबंधगा तस्स चेवदेसबंधगा संखेजगुणा वेउब्बियरीरस्स सब्वबंधगा असंखेजगुणा तस्स चेव देसबंधगा असंखेनगुणा तेया-कम्मगाणं अबंधगा अनंतगुणा ओरालियसरीरस्स सब्दबंधगा अनंतगुणा तस्स चेव अबंधगा विसेसाहिया तस्स चेव देसबंधगा असंखेजगुणा तेया-कामगाणं देसबंधगा विसेसाहिया वेउब्बियसरीरस्स अबंधगाविसेसाहिया आहारगसरीरस्स अबंधगा विसेसाहिया सेवं मंते सेवं मंतेति।३५११-353 अहमे सतेनवो उसोसपत्तो. -: द स मो-उद्दे सो :(४३०) रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी-अण्णउत्थिया णं भंते एवमाइक्खंति जाव एवं परूवेति-एवं खलु सील सेयं सुयं सेयं सुयं सील सेयं से कहपेयं भते एवं गोयमा जणं ते अण्णउत्थिया एचमाइक्खंति जाव जे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंसु अहं पुण गोयमा एवमाइक्खामि जाव परूवेमि-एवं खलु मए चतारि पुरिसजाया पत्रत्तातं जहा-सीलसंपन्ने नाम एगे नो सुयसंपन्ने सुयसंपन्ने नापंएगे नो सीलसंपन्ने एगे सीलसंपत्रे विसुयसंपन्ने वि एगेनो सिलसंपन्ने नो सुयसंपन्ने तत्यणंजे से पढमे पुरिसजाए सेणंपुरिसे सीलवं असुयवं-उवरए अविण्णायधम्मे एस णं गोयमा मए पुरिसे देसाराहए पत्रत्ते तत्थ णंजे से दोचे पुरिसजाए से गं पुरिसे असीलवं सुयवंअणुवरए विण्यायधम्मे एसणंगोयमा मए पुरिसे देसविराहए पन्नतेतत्य गंजे से तच्चे पुरिसजाए से णं पुरिसे सीलवं सुयवं-उवरए विष्णायधम्मे एस णं गोयमा मए पुरिसे सव्वाराहए पन्नत्ते तत्थ णंजे से चउत्थे पुरिसजाए से णं पुरिसे असीलवं क्कअसुयवं-अनुवरए अविष्णायधम्मे एस णं गोयमा मए पुरिसे सव्वविराहए पन्नते ३५२१-354 {४३१) कतिविहा णं भंते आराहणा पन्नत्ता गोयमा तिविहा आराहणा पत्रता तं जहा For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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