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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवई - 4/12/ विट्ठाए अण्णयरे अकिञ्चट्ठाणे पडिसेविए तीसे णं एवं भवइ-इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमिजावतवोकम्मंपडिवजामितओपच्छापवत्तिणीए अंतियं आलोएस्सामिजाव तवोकम्म पडिवजिस्सामि सा य संपट्ठिया असंपत्ता पवत्तिणी य अमुहा सिया सा णं भंते किं आराहिया विराहिया गोयमा आराहिया नो विराहिया साय संपष्ठिया जहा निग्गंधस्स तिणि गपा भणिया एवं निग्गंथीए वितिणि आलावगा भाणियव्वा जाव आराहिया नो विराहिया से केणद्वेमं भंते एवं बुखाइ-आराहए नो विराहए गोयमा से जहानामए केइ पुरिसे एगं महं उपणालोमं दा गयलोमं दा सणलोमं वा कप्पासलोमं वा तणसूयं वा दहा वा तिहा वा संखेजहा वा छिंदिता अगणिकायंसि पक्लिवेजा, से नूणं गोयमा छिज्जमाणे छिण्णे पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते दग्झमाणे दड्ढे त्ति वत्तव्यं सिया हंता भगवं छिज्जमाणे छिण्णे पविखप्पमाणे पक्खित्ते दज्झमाणे दड्ढे त्ति बत्तव्यं सिया से जहा वा केइ पुरिसे वत्यं अहतं वा धोतं वा तंतुग्गयं वा मंजिट्ठ-जोणीए पविखवेजा से नूणं गोयमा उखिप्पमाणे उदिखते पविष्यमाणे पक्खिते रज्जमाणे रत्ते ति क्तव्वं सिया हंता भगवं उक्खिप्पमाणे उक्खिते पक्खिप्पमाणे पविखते रज्जमाणे रतेत्ति वत्तव्यं सिया से तेणट्टेणं गोयमा एवंदुच्चइ-आरहए नोविराहए।३३३1334 (४०८) पदीवस्स णं भंते झियायमाणस्स किं पदीवे झियाइ लट्ठी झियाइ वत्ती झियाइ तेले झियाइ दीवचंपए झियाइ जोती झियाइ गोयमा नो पदीवे झियाइनो लट्ठी झियाइ नो वत्ती झियाइ नो तेल्ले झियाइ नो दीवचंपए झियाइ जोती झियाइ अगारस्स णं भंते झियायमाणस्स किं अगारे झियाई कुश झियाइकडणा झियाइधारणा झियाइबलहरणे झियाइ वंसा झियाइ मल्लाझियाइ बागा झियाइ छितराझियाइछाणे झियाइजोती झियाइ गोयमा नोअगारे झियाइनोकडा झियाइजावनो छाणे झियाइ जोती झियाइ ३३४॥335 (४०९) जीवे णं भंते ओरालियसरीराओ कतिकिरिए गोयमा सिय तिकिरिए सिय चउकिरियए सिय पंचकिरिए सिय अकिरिए नेरइए णं भंते ओरालियसरीराओ कतिकिरिए गोयमा सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए असुरुकमारे णं भंते ओरालियसरीराओ कतिकिरिए एवं चेव एवं जाव देसाणिए नवरं-मणस्से जहा जीवे, जीवेणं भंते ओरालियसरीरेहितो कतिकिरिए गोयमा सिय तिकिरिए जाव सिय अकिरिए नेरइए णं भंते ओरालियसरीरेहितो कतिकिरिएएवं एसोविजहा पढमोदंडओतहा भाणियब्बोजाव वेमाणिए नवरं-मणुस्से जहाजीवे जीवाणं भंते ओरालियसरीराओ कतिकिरिया गोयमा सिय तिकिरिया जाव सियअकिरिया नेरइया णं भंते ओरालियसरीराओ कतिकिरिया एवं एसो वि जहा पढ़मो दंडओ तहा माणियव्यो जाव वेमाणिया नवरं मणुस्सा जहा जीवा जीया णं भंते ओरालियसरीरेहितो कतिकिरिया गोयमा तिकिरिया वि चउकिरिया वि पंचकिरिया वि अकिरिया वि नेरइया णं भंते ओरालियसरीरेहितो कतिकिरिया गोयमा तिकिरिया वि चउकिरिया वि पंचकिरिया वि एवं जाव वेमाणिया नवरंमणुस्सा जहा जीवा जीवे णं भंते वेउब्बियसरीराओ कतिकिरिए गोयमा सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय अकिरिए नेरइएणं भंते वेउब्वियसरीराओकतिकिरए गोयमा सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए एवं जाव वेमाणिए नवरं-मणुस्से जहा जीवे एवं जहा ओरालियसरीरेणं चत्तारि दंडगा भणिया तहा वेठब्वियसरीरेणं वि चत्तारि दंडगा भाणियव्या नवरं-पंचमकिरिया न भण्णइ सेसंतं वेव एवं वेउब्वियं तहा आहारगं पि तेयगं पि कम्मगं पि भाणियब्वं-एककेके चत्तारि दंडगा For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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