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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२१ छटुंसतं - उद्देसो-७ भंते सेवं भंते ति।२४७1-247 • सते सत्तपो उद्देसो सफ्तो . - अहमो-उसो :(३१३) कति णं भंते पुढवीओ पन्नताओ गोयमा अट्ठ पुढवीओ पत्रत्ताओ तं जहारचणप्पभा जाव ईसीपल्भारा अत्यि णं भंते इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे गेहा इ वा गेहादणा इ वा गोयमा नो इणद्वे समढे अस्थि णं भंते इमीसे रयणप्पभाए अहे गामाइ वा जाव सण्णिवेसा इ वा नो इणढे समढे अस्थि णं भंते इमीसे रयणप्पथाए पुढवीए अहे ओराला बलाहया संसेयंति संमुच्छंति वासं वासंति हंता अस्थि तिण्णि वि पकरेंति-देवो विपकरेति असुरो वि पकरेति नागो विपकरेति अस्थि णं भंते इपीसे स्यणप्पमाए पुढवीए बादरे थणियसद्दे हंता अस्थि तिणि वि पकरेंति अस्थि गं भंते इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे दादरे अगणिकाए गोयमा नो इणडे समढे नत्रस्थ विष्णहगतिसमावन्नएणं अस्थि गंभंते इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे चंदिम-[सूरिच-गहगणनखत्त ताराखवा नो इणटे सपढे अस्थि णं भंते इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे चंदामा ति या सूरामा ति वा नो इणढे समटे एवं दोचाए पुढवीए भाणियव्वं एवं तबाए विभाणियब्द नवरं-देवो विपकरेति असुरो विपकरेति नो नागो पकरेति चउत्थीए वि एवं नवरं-देवो एकको पकरेति नो असरो नो नागो एवं हेढिलासु सव्यासु देवो पकरेति अस्थि णं भंते सोहम्मीसाणाणं कप्पाणं अहे गेहा इ वा गेहावणा इ वा नो इणढे समढे अत्यिणं भंते ओराला वलाहया हंता अस्थि देवो पकरेति असुरो वि पकरेति नो नाओ एवं थणियसद्दे वि अत्थे णं भंते बादरे पुढवीकाए बादरे अगणिकाए नो इणद्वे समटे नन्नत्य विग्गहगवतिसमावन्नएणं अस्थि णं भंते चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-ताराख्या नो इणढे समढे अस्थि णं भंते गामा इ वा जाव सण्णिवेसा इ वा नो इणढे समढे अस्थि णं भंते चंदाभा ति वा सूराभा ति वा गोयपा नो इणढे समढे एवं सणंकुमार-पाहिंदेसु नवरं-देवो एगो पकरेति एवं बंभलोए वि एवं दंभलोगस्स उवरि सव्वेर्हि देवो पकरेति पुछियव्यो य दादरे आउकाए बादरे अगणिकाए बादरे वणस्सइकाए अण्णं तं वेव।२४८1-248 (३१४) तमुकाए कप्पपणए अगणी पुढवी य अगणि-पुढवीसु आऊ तेऊ यणस्सई कप्पुवरिमकण्हारईसु (३१५) कतिविहे णं भंते आउययंधे पन्नत्ते गोयमा छव्धिहे आउयबंधे पत्रते तं जहा. जातिनामनिहत्ताउए गतिनाम-निहताउए ठितिनामनिहत्ताउए ओगाहणानामनिहत्ताउए पएसनामनिहत्ताउए अनुभागनामनिहत्ताउए दंडओ जाव वेमाणियाणं जीवा णं भंते किं जातिनामनिहत्ता गतिनामनिहत्ता [ठितिनामनिहत्ता ओगाहणानामनिहत्ता पएसनामनिहत्ता] अनुभागनामनिहत्ता गोयमा जातिनामनिहत्ता विजाव अनुभागनामनिहत्ता वि दंडओ जाव वेमाणियाणं जीवा णं भंते किं जातिनामनिहत्ताउया जाव अनुभागनामनिहत्ताउया गोयमा जातिनामनिहत्ताउया वि जाव अनुभागनामनिहत्ताउया वि दंडओ जाव वेमाणियाणं एवं एए दुवालस दंडगा भाणियव्वाजीवाणं भंते किंजातिनामनिहत्ता जातिनामनिहत्ताउया जीवाणं भंते किं जातिनामनिउत्ता जातिनामनिउत्ताउया जीवा णं भंते किं जातिगोयनिहत्ता जातिगोयनिहत्ताउया जीवा गं भंते किं जातिगोयनिउत्ता जातिगोयनिउत्ताउया जीवा गं भंते किं जातिनामगोयनिहत्ता जातिनामगोयनिहाउत्तवा जीवा गं भंते किं जातिनामगोनिउत्ता जातिनामगोयनिउत्ताउया जाव अनुभाग ॥५१||-51 For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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