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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवई - ६/-14/२११ तिणट्टे समढे कादूसणिया पुण सा तमुक्काए णं भंते केरिसए वण्णएणं पन्नत्ते गोयमा काले कालो भासे गंभीरे लोमहरिजणणे भीपे उत्तासणए परमकिण्हे यण्णेणं पत्ते देवे विणं अत्थेगतिएजेणं तप्पढमयाए पासित्ता णं खुभाएजा अहेणं अभिसमागच्छेज्जा तओ पच्छा सीहं-सीहं तुरिय-तुरियं खिप्पामेव वीतीयएजा तमुक्कायस्सणं भंते कति नामधेजा पत्रत्ता गोयमा तेरस नाधेजा पन्नत्ता तं जहा-तमे इ वा तमुक्काए इ वा अंधकारेइ वा महंधकारे इ वा लोगंधकारे इ वा लोगतमिसे इ वा देवंधकारे इ वा देवतमिसे इवा देवरणोइवा देवदूहे इ या देवफलिए इ वा देवपडिक्खोमे इ वा अरुणोदए इ वा समुद्दे, तमुक्काए णं भंते किं पुढविपरिणामे आउपरिणामे जीवपरिणामे पोग्गलपरिणामे गोयमा नो पुढविपरिणामे आउपरिणामे वि जीवपरिणामे दि पोग्गलपरिणामे वि तमुक्काए णं बंमते सव्ये पाणा भूया जीवा सत्ता पुढवीकाइयत्ताए जाव तसकाइयत्ताए उववन्नपुव्वा हंता गोयमा असिं अदुवा अनंतक्खात्तो नो चेव णं बादरपुढविकाइत्ताए बादरअगणिकाइत्ताए या ।२४०1-240 (२१२) कइ णं भंते कण्हरातीओ पत्रत्ताओ गोयमा अट्ठ कण्हरातीओ पनत्ताओ कहि णं मंते एयाओ अट्ठ कण्हरातीओ पन्नत्ताओ गोयमा उप्पिं सणंकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं हब्बिं बंभलोए कप्पे रिट्टे विमाणपत्थडे एत्य णं अक्खाडग-समचउरंस-संठाणसंठियाओ अट्ट कण्हरातीओ पत्रत्ताओ तं जहा-पुरस्थिमे णं दो पञ्चस्थिमे णं दो दाहिणे णं दो उतरे णं दो पुरत्थिमन्मंतरा कण्हराती दाहिण-बाहिरं कण्हराति पुठ्ठा दाहिणअंतरा कण्हराती पचत्थिप बाहिरं कण्हरातिं पुट्ठा पञ्चस्थि- मभंतरा कण्हराती उत्तर-बाहिरं कण्हरातिं पुट्ठा उत्तरब्यंतरा कण्हराती पुरस्थिप-बाहिरं कण्हरातिं पुट्ठा दो पुरस्थिम-पञ्चत्थिमाओ याहिराओ कण्हरातीओ छलंसाओ दो उत्तर-दाहिणाओ बाहिराओ कण्हरातीओतंसाओ दो पुरस्थिम-पच्चस्थिमाओ अब्धंतराओ कण्हरातीओ चउरंसाओ दो उत्तर-दाहिणाओ अयंतराओ कण्हरातीओ चउरंसाओ।२४१-११-241-1 (२९३) पुव्यावरा छलसातसा पुण दाहिणुत्तरा बज्झा अब्मंतर चउरंसा सव्या विय कण्हरातीओ ॥४३11-43 (२९४) कण्हरातीओणं भंते केवतियं आयामेणं केवतियं विक्खंभेणं केवतियंपरिक्खेवेणं पन्नत्ताओ गोयमा असंखेजाई जोयणसहस्साई आयामेणं संखेज्जाइं जोयणसहस्साई विक्खंभेणं असंखेजाइं जोयणसहस्साइं परिक्रोवेणं पन्नताओ कण्हरातीओ णं भंते केमहालियाओ पन्नत्ताओ गोयमा अयं णं जंबुद्दीचे दीवे (जाव देवे णं महिड्डीए जाय महाणुभावे इणामेव-इणामेव त्ति कटु केवलकप्पं जंबद्दीवं दीवं तिहिं अच्छरानिवाएहिं तिसत्तक्खुत्तो अनुपरियष्टित्ता णं हव्वमागच्छिज्जा से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए जाव दिव्याए देवगईए वीईवयमाणे-बीईवयमाणे जाव एकाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्कोसेणं अद्धमासं वीईवाएजा अत्येगइए कण्हरातिं वीईवएज्जा अत्थेगइए कण्हरातिं नो वीईवएज्जा एमहालियाओ णं गोयमा कण्हरातीओ पन्नत्ताओ अस्थि णं भंते कण्हरातीसु गेहा इ वा गेहावणा इ वा नो इणढे समढे अस्थि णं भंते कण्हरातीसु गामा इ या जाव सण्णिवेसा इ वा नो इणढे समझे अस्थि णं भंते कण्हरातीतु ओराला बलाया संसेयंति सम्मुच्छंति चासं वासंति हंता अत्थितं भंते किं देवो पकरेति असरोपकरेति नागो पकरेति गोयमा देवो पकरेति नो असुरो नो नागो पकरेति अत्यि णं भंते कण्हरातीसु बादरे धणियसद्दे बादरे विजुयो हंता अस्थि For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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