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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ २//१/१६६ चम्म झामे रोमज्झामे सिंगज्झामे खुरज्झामे नक्खज्झामे एए णं पुव्यभावपण्णवणं पडुच तसपाणजीवसरीरा तओ पच्छा सत्यातीया जाव अगणिजीवसरीरा ति वतव्वं लिया अंहं णं भंते इंगाले छारिए मुझे गोमए-एए णं किंसरीरा ति बत्तव्वं सिया गोयमा इंगाले छारिए मुझे गोमए-एए णं पुव्वभावपष्णवणं पडुच्च एगिंदयजीवसरीप्पयोगपरिणामिया वि जाव पंचिदियजीवसरीरप्पयोगपरिणामिया वि तओ पच्छा सत्यातीया जाव अगणिजीवसरीरा ति वतव्वं FAT 19201-180 ( २२२) लवणे णं भंते समुद्दे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं पन्नत्ते एवं नेवव्वं जाव गोगाणुभावे सेवं भंते सेवं भंते त्ति भगवं गोयमे जाव विहरइ ।१८१/-181 ● पंचमे सते बीओ उसो समत्ती - त इ ओ सो : → ( २२३) अण्णउत्थिया णं भंते एवमाइक्खति भाति पन्नवेति परूवेति-से जहानामए जालगंठिया सिया-आनुपुव्विगढिया अनंतरगढिया परंपरगढिया अण्णमण्णगढिया अण्णमण्णगरुगत्ताए अण्णमण्णभारित्ताए अण्णमण्णगरुय संभारियत्ताए अण्णमष्णघडताए चिट्ठइ एवामेव वहूणं जीवाणं बहुसु आजातिसहस्सेसु बहूई आउयसहस्साइं आनुपुव्विगढ़ियाई जाव चिट्ठति एगे वि य णं जीवे एगेणं समएणं दो आउयाई पडिसंवेदेइ तं जहा - इहभवियाउयं च परभवियाउं च जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदइ, तं समयं परभवियाउयं पडसंवेदेइ जं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ, तं समयं इहमवियाउयं पाडसंवेदे इहभवियाउयस्स पडिसंवेदनयाए परभवियाउयं पडिसंवेदेइ परभवियाउयस्स पडिसंवेदणयाए इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो आउयाई पडिसंवेदएइ तं जहा - इहभवियाउवं च परमविद्यायं च ] से कहमेयं भंते एवं गोयमा जण्णं तं अण्णउत्थिया तं चेव जाव परभवियाउयं च जे ते एव माहंसु तं मिच्छा अहं पुण गोयमा एबमाइक्खामि भासापि पण्णेवेपि परूवेमि से जहा - नामए जालगंठिया सिया - [ आनुपुव्विगदिया अनंतरगढिया परंपरगढिया अण्णमण्णगढिया अण्णमण्णगरुयत्ताए अण्णमण्णभारियत्ताए अण्णमण्णगरुय संभारियत्ताए ) अण्णमण्णधडता चिट्ठति एवामेच एगमेगस्स जीवस्स बहूहिं आजातिसहस्सेहिं बहु आउयसहस्साई आनुपुव्यिगढिया जाय चिट्ठति एगे वि य णं जीवे एगेणं समएणं एवं आउयं पडिसंवेदेइ तं जहाइहभवियाउयं वा परभविगाउयं वा जं समयं इहभवियाउयं पडि- संवेदएइ, नो तं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ जं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ नो तं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ इहभवियाउयस्स पडिसंवेदनाए नो इहभवियाउयं पडिसंवेदइ एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एवं आउयं पडिसंवेदे तं जहा - इहभवियाज्यं वा परभवियाउयं वा ११८२ -182 (२२४) जीवे णं भंते जे भविए नेरइएसु उववजित्तए, से णं भंते किं साउए संकमइ निराउए संकमइ गोयमा साउए संक्रमइ नो निराउए संकनइ से णं भंते आउए कहिं कडे कहिं समाइणे गोयमा पुरिसे भवे कडे पुरिसे भवे समाइण्णे एवं जाव वेमाणियाणं दंडओ से नूणं भंते जे जं भविए जोणि उववजित्तए से तमाउयं पकरेइ, तं जहा-नेरयाउयं वा तिरिक्खजोणियाउयं वा मणुस्साउयं वा देवाउयं वा हंता गोयमा जे जं भविए जोणि उववजितए से तमाउयं पकरेइ तं जहा - नेरइयाउयं वा तिरिक्खजोणियाउयं वा, मणुस्साउयं वा देवाउयं वा नेरइयाउयं पकरेमाणे भगवई For Private And Personal Use Only -
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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