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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पइष्णग समयाओ लाभ-अभिगम-सम्मत्तविसुद्धया घिरतं मूलगुणउत्तरगुणाइयारा टिइविसेसा य वहुवि- सेसा पडिमाभिग्गहगहण-पालणा उवसग्गाहियासणा निरुवसागा य तवा य विचित्ता सील- व्वयवेरसण-गुण-पचखाण-पोसहोववासा अपच्छिममारणंतियाऽयसलेहणा-झोसणाहिं अप्पाणं जह य पावइत्ता वहूणि भत्ताणि अणसणाए य छेयइत्ता उववण्णा कप्पवरविमा- णुतमेसु जह अनुभवंति सुरवरविमाणवरपोंडरीएए सोरखाई अणोवमाई कमेणं भोत्तूण उत्तमाई तओ आउक्खएणं चुया समाणा जह जिणमयम्मि चोहि लक्षुण य संजमुत्तमं तमरयोघ विष्णमुकका उति जह अक्खवं सम्बदुक्खमोक्खं एते अण्णे व एवमाइअस्था वित्यरण व उवासगदसासु णं परित्ता वारणा संखेचा अनुओगदारा संखेजाओ पडिवत्तीओ संखेचा वेढा संखेजा सिलोगा संखेजाओ निवृत्तीओ संखेजाओ संगहणीओ से णं अंगट्टयाए सतमे अंगे एगे सुपखंधे दस अज्झयणा दस उद्देसणकाला दस समुद्देसणकाला संखेजाई पबसवसहस्साई पबग्गेणं संखेजाई अक्खराई [अनंता गमा अनंता पजवा परिता तसा अनंता थावरा सासवा कडा निबद्धा निकाइया जिणपन्नत्ता भावा आधविनंति पन्नविनंति पविजंति दंसिर्जति निदंसिर्जति उवदंसिर्जति से एवं आया एवं नाया एवं विण्णाया एवं चरण करण परूबणया आधविञ्जति पत्रविनति परुविनति दंसिजति निदंसिजति उवदंसिजति सेत्तं उवासगदसाओ ११४२-142 (२२४) से किं तं अंतगडदसाओ अंतगडसासु णं अंतगडाणं नगराई उजाणाई चेइ. बाई वणसंडाई रावाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्पायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इढिविसेता भोगपरिचाया पञ्चजाओ सुयपरिगहा तवोवहाणाई पडिमाओ वहुविहाओ खमा अञ्जवं मद्दवं च सो च सच्चसहियं सत्तरसविहो य राजमो उत्तमं च भं आकिंचणया तवो चियाओ समिगुतीओ चेव तह अप्पपायजोगो सज्झायज्झाणाण य उत्तमाणं दोण्हपि लक्खणाई पत्ताणं व संजमुत्तमं जियपरीसहाणं चरबिहकम्मरखवम्मि जह केवलम्स लंभो परचाओ जत्तियो वजह पालिओ मणिहिं पायोवगओ य जो जहिं जत्तिवाणि भताणि छेवइत्ता अंतगडो मुनिवरो तमस्योधविष्पमुक्को मोक्खसुहमनुत्तरं च पत्ता एए अण्णे य एचपाइअस्था वित्थारेणं परूवेई |अंतगडदसासु णं परिता वायणा संखेजा अनुओगदारा संखेनाओ पाडेवत्तीओ संखेचा वेढा संखेजा सिलोगा संखेनाओ निजीओ संखेज्ञाओ संगहणीओ] से णं अंगट्टयाए अट्ठमे अंगे एगे सुवक्खंधे दस अग्झयणा सत्त वागा दस उद्देसणकाला इस समुद्देसणकाला संखेजाई पयसयसहस्साइ पचग्गेणं संखेचा अखरा [अनंता गमा अनंता पञ्जया परित्ता तसा अनंता थावरा सासया कड़ा निवद्धा निकाइया जिणपन्नताभावा आपविजंति पत्रविनंति परूविनंति दंसितंति निदंसिर्जति उवदंसिर्जति से एवं नाया एवं वित्राबा एवं चरण-करण-परूवणया आपविनति पन्नविनंति परविअंति देसिजति निदंसिन्नति उवदंसिजति सेत्तं अंतगडदसाओ 1१४३1-143 (२२५) से किं तं अनुतरोबवाइयदसाओ अनुतरोववाइयाणं नगराई उदाणाई वेइयाई वणसंडई रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइयपरलोइया इइिविसेसा भोगपरिच्चाया पब्वज्जाओ सुवपरिग्गाहा तयोवहाणाई परियागा संलेहणाओ भतपच्चक्खाणाई पाओवगमणाई अनुतरोववत्ति सुकुलपञ्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आधिविनंति अनुतरोयवातिवदसामु णं तित्थकरसमोसरणाइं परममंगलजग For Private And Personal Use Only
SR No.009730
Book TitleAgam 04 Samavao Angsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages82
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 04, & agam_samvayang
File Size2 MB
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