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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सहिमो समवाओ सविमो-समवाओ (१३८) एगमेगे णं मंडले सूरिए सट्टिए-सट्ठिए मुहुत्तेहिं संधाएइ लवणस्स णं समुद्दस्स सहि नागसाहस्सीओ अग्गोदयं धारति विमले णं अरहा सद्धिं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था वलिरस णं वइरोयर्णिदरस सर्द्धि सामाणियसाहस्सीओ पनत्ताओ यंभस्स णं देविंदस्स देवरण्गो सहि सामाणियसाहस्सीओ पन्नत्ताओ सोहम्मीसाणेसु-दोसु कप्पेसु सहि विमाणावारासयसहस्सा पन्नत्ता ।६०160 • सविमो समवाओ समत्तो. | एगसट्ठिमो-समचाओ (१३९) पंचसंवच्छरियस्स णं जुगस्स रिदुभासेणं मिग्झमाणस्स एगसट्टि उदुमासा पत्रत्ता गंदररस णं पच्चयरस पढमे कंडे एगसटिजोवणसहस्साई उद्धं उच्चत्तेणं पत्रत्ते चंदमंडले णं एगसट्ठिविभागविभाइए समंसे पन्नत्ते एवं सूरस्सयि ।६१/-61 .एगसदिमो समवाओ समत्तो. | बावटिमो समवाओ (१४०) पंचसंवच्छरिए णं जुगे वायढेि पुणिमाओ वायदि अमावसाओ पण्णत्ताओ वासुपुत्रास णं अरहओ वावर्द्वि गणा वावहि गणहरा होत्था सुककपस्खस्स णं चंदे वावद्धि भागे दिवरो-दिवसे परिवड्ढइ ते चेव बहुलपक्खे दिवसे-दिवरो परिहायइ सोहम्पीसाणेसु कप्पेसु पढने पत्थडे पढमावलियाए एगमेगाए दिसाए वावट्ठि-वावडिं विमाणा पत्रत्ता सचे वेपाणियाणं वायढि विमाणपत्थडा पत्थडग्गेणं पबत्ता १६२।-62 • बावटिमो समवाओ सपत्तो. | तेवविमो-समवाओ (१४१) उसभे णं अरहा कोसलिए तेसाढे पुबसयसहस्साई महारायवासमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओं अणगारिवं पब्वइए हरिवासरम्मवासेस मणुस्सा तेवट्ठिए राइंदिएहिं संपत्तजोव्वणा भवंति निसेहे णं पव्वए तेवहि सूरोदया प. एवं नीलवंतेति ।६३३-63 • तेवट्दिमो समवाओ समत्तो . चउसट्ठिपो-समयाओ । (१४२) अमिया णं मिक्युपडिमा चउसट्ठीए राइदिएहिं दोहि य अट्ठासीएहिं भिक्खासएहि अहासुतं अहाकप्पं अहामग्गं अहातचं सम्मं काएण फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आणाए आराहिया वावि भवइ चउसद्धि असुरकुमारावाससयसहस्सा पत्रत्ता चमररसणं राणो चउसद्धिं सामाणियसाहस्सीओ प. सच्चेवि णं दधिमुहा पव्वया पल्ला-संठाण-संटिया सव्यत्य समा दस जोयणसहरसाई विक्खंभेणं उससेहेणं चउसढ़ि-चउसढि जोयणसहासाई पत्रत्ता सोहम्मीसाणेसुं बंमलोए य-तिसु कप्पेसु चडसढि विमाणावाससयसहस्सा पन्नत्ता सबस्सवि य णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चउसट्ठिलट्ठीए महाधे मुत्तामणिमए हारे पन्नत्ते ।६४J-64 • चउसदिमो समयाओ सपत्तो . For Private And Personal Use Only
SR No.009730
Book TitleAgam 04 Samavao Angsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages82
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 04, & agam_samvayang
File Size2 MB
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