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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ समवाओ - १५/३४ (३४) असिएते धणु कुम्भे वालुए वेयरणीतिय खरस्सरे महाधोसे एमेते पत्ररसाहिआ |१२||-2 (३५) नमी णं अरहा पन्नरस धणूई उड्ढे उच्चत्तेण होत्था धुवराहू णं बहुलपक्खस्स पाडिवयं पन्नरसइ भागं पन्नरसइ भागेणं चंदस्स लेसं आवरेत्ताणं चिट्ठति तं जहा-पढपाए पढमं भागं वीआए वीयं भाग तइआए तइयं भागं चउत्थीए चउथं भागं पंचमीए पंचम भागं छट्ठीए छटं भागं सत्तमीए सत्तमं भागं अट्ठमीए अट्ठमं भागं नवमीए नवमं भागं दसमीए दसमं भागं एक्कारसीए एक्कारसमं भाग वारसीए वारसमं भाग तेरसीए तेरसमं भागं चउद्दसीए चउद्दसमं भागं] पत्रासेसु पत्ररसमं भागं तं चैव सुक्कपक्खस्स उवदंसेमाणे-उवदंसेमाणे चिट्ठति तं जहा-पढमाए पढमं मागं जाब पत्ररसेसु पत्ररसमं भाग छ नक्खता पत्ररसमुहुत्तसंजुत्ता पन्नत्त (तं जहा)- १५-२0-15-2 (३६) सतभिसय भरणि अद्दा असलेसा साइ तह य जेट्ठा य एते छन्नलत्ता पत्ररस महत्त संजुत्ता ॥१३॥-1 (३७) चेत्तासोएसु भासेसु सइ पत्ररसमुहुत्तो दिवसो भवति सइ पनरत मुहुत्ता राई भवति विनाअनुप्पवायस्स णं पुवस्स पन्नरस वत्यू पन्नत्ता पणसाणं पन्नरसविहे पओगे पन्नत्ते तं जहा-सचमणपओगे मोसमणपओगे सच्चामोसमणपओगे असच्चामोसमणपओगे ओरालिअसरीरकायपओगे ओरालिअमीससरीरकायपओगे वेउब्बिअसरीकावपओगे वेऽब्बिअमीससरीरकायपओगे आहारयसरीरकायपओगे आहारयमीससरीरकायपओगे कामयसरीरकायपओगे इमीसे पं रपणप्पभाए पुढवीए अत्यंगइयाणं नेरइयाणं पन्नरस पलिओवमाई ठिई पन्नता पंचपाए पुढवीए अत्येगइयाणं नेरइयाणं पत्ररस सागरोवमाई ठिई पत्रत्ता असुरकुपाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं पत्ररस पलिओवपाई टिई पन्नत्ता सोहम्मीसाणेसुं कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं पन्नरस पलिओवमाई ठिई पन्नता महासुक्के कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं पन्नास सागरोदमाई ठिई पन्नत्ता जे देवा नंदं सुणंदं नंदावत्तं नंदप्पभं [नंदकंतं नंदवण्णं नंदलेसं नंदनयं नंदसिंगं नंदसिटुं नंदकूड] नंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं पन्नरस सागरोवपाइं ठिई पन्नत्ता ते णं देवा पत्ररसहं अन्द्वमासाणं आणमंति वा पाणमंति या ऊससंति वा नीससंति वा तेसि णं देवाणं पत्ररसहिं वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पजइ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे पन्नरसहिं भवगहणेहिं सिज्झिस्संति वज्झिस्संति मुचिस्संति परिनिव्वाइसंति सव्वदुक्खाणं] मंतं करिस्सति ।१५-15 .पवरसमो समवाओ सपत्तो. |सोलसमो-समवाओ (३८) सोलस य गाहा-सोलसगा पन्नत्ता तं जहा-समए वेवालिए उचप्सग्गपरिण्णा इस्थिपरिण्णा निरयविभत्ती महावीरथुई कुसीलपरिभासिए वीरिए धम्मे समाही मागे समोसरणे आहत्तहिए गंथे जमईए गाहा, सोलस कसाया पत्रता तं जहा-अनंताणुबंधी कोहे [अनंताणुवंधीमाने अनंताणुबंधीमाया) अनंताणुबंधीलोभे अपञ्चक्खाणकसाएकोहे अपञ्चक्खाणकसाएमाणे अपच्चखाणकसाएमाया अपञ्चक्खाणकसाएलोभे पच्चक्खाणावरणकोहे पञ्चक्खाणादरणेमाणे पचखाणवरणामाया पञ्चक्खाणवरणेलोभे संजनणेकोहे संजलणेमाणे संजलणे For Private And Personal Use Only
SR No.009730
Book TitleAgam 04 Samavao Angsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages82
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 04, & agam_samvayang
File Size2 MB
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