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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४/२/२९५ हत्थी पन्नत्ता तं जहा - मिए नामयेगे भद्दमणे मिए नामभेगे मंदमणे भिए नाममेगे मियमणे मिए नामयेगे संकि - ण्णमणे एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता तं जहा मिए नामभेगे भद्द मिए मिए नाममेगे मंदमणे मिए नाममेगे नियमणे मिए नाममे संकिण्णमणे चत्तारि हत्थी पन्नत्ता तं जहा- संकिण्णे नाममेगे भद्दमणे संकिण्णे नाममेगे मंदमणे संकिण्णे नाममेगे मियमणे संकिण्णे नाममेगे संकिण्णमणे एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता तं जहा- संकिण्णे नाममेगे भद्दमणे संकिण्णे नाममेगे मंदमणे संकिण्णे नामपेगे मियमणे संकिण्णे नामपेगे संकिण्णमणे १२८१1-281 ( २९६ ) मधुगुलिय - पिंगलक्खो अणुपुव्व-सुजाव - दीहणंगूलो पुरओ उदग्गधी सव्वगसमाधितो भद्दो ( २९७) चल - बहल - विसम - चम्मो थूलसिरो धूलएण पेएण थूलनह- दंत - वालो हरिपिंगल- लोयणो मंदो ( २९८ ) तणुओ तणुयागीओ तणुयतओ तणुयदंत - नह-वालो भीरू तत्युच्विग्गो तासीय भवे मिए नामं ( २९९) एतेसिं हत्थीणं घोवा योव तु जो अणुहरति हत्थी रूवेण व सीलेण व सो संकिण्णति नायव्वो (३००) भद्दो मज्जइ सरए मंदो उण मज्जते वसंतंमि मिउ मज्जति हेमंते सकिण्णो सव्वकालंपि ठाणं For Private And Personal Use Only · 1981-1 119411-2 ||१६|| ३ 1190911-4 ||१८|| -5 (३०१ ) चत्तारि विकहाओ पन्नत्ताओ तं जहा - इत्यिकहा भत्तकहा देसकहा रायकहा इत्थिकहा चउबिहा पन्नता तं जहा- इत्थीणं जाइकहा इत्थीणं कुलकहा इत्यीणं रूचकहा इत्थीणं त्यका मत्तकहा चउव्विहा पन्नत्ता तं जहा - भत्तस्स आवावकहा भत्तस्स णिब्बाकहा भत्तस्स आरंभकहा भत्तस्स विद्वाणकहा देसकहा चउव्विहा पन्नत्ता तं जहा- देसविहिकहा देसविकम्पकहा देसच्छंदकहा देखणेवत्थकहा रायकहा चउव्हिा पन्नत्ता तं जहारण्णो अतियाणकहा रण्णो णिजाणकहा रण्णो बलवाहणकहा रण्णो कोसकोट्ठागारकहा चउविहा कहा पन्नत्ता तं जहा - अक्खेवणी विक्खेवणी संवेयणी निव्वेदणी अक्खेणी कहा चउव्हिा पन्नत्ता तं जहा आयार अक्खेवणी वदहार अक्खेवणी पण्णत्तिअक्खेवणी दि बात अक्खेदणी विक्खेवणी कहा चउव्विहा पन्नत्ता तं जहा ससमयं कहेइ ससमयं कहित्ता परसमयं कहेइ परसमयं कहेत्ता ससमयं ठावइता भवति सम्मवायं कहेइ सम्पवायं कहेत्ता मिच्छावायं कहेइ मिच्छावायं कहेत्ता सम्मवायं ठावइता भवति संवेपणी कहा चउव्विहा पन्नता तं जहा - इहलोगसंवेयणी परलोगसंवेयणी आतसरीरसंवेयणी परसरीरसंवेयणी निव्वेदणी कहा चउबिहा पन्नत्ता तं जहा इहलोग दुबिण्ण कम्मा इहलोगे दुहफलविवाग - संजुता भवंति इहलोगे दुखिणा कम्मा परलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति परलोगे दुचिण्णा कम्मा इहलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति परलोगे दुचिण्णा कम्पा परलोगे दुहफल- विवागसंजुत्ता भवंति लोगेवोगे सुचिण्णा कम्मा इहलोगे सुहफलविवागसंजुत्ता भवंति इह लोगे सुचिष्णा कम्मा परलोगे सुहफलविवागसंजुत्ता भवंति परलोगे सुचिण्ण कम्मा इहलोगे सुहफलविवागसंजुत्ता भवंति पर लोगे सुचिण्णा कम्मा परलोगे सुहफलविवागसंजुत्ता भवंति 1२८२ -282
SR No.009729
Book TitleAgam 03 Thanam Angsutt 03 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages170
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size3 MB
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