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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८ ___टाणं - ४/१/२६९ नामभेगे नो पूएइ एगे पूएइ वि पूयावेति वि एगे नो पूएइ नो पूयावेति चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता तं जहा-घएइ नाममेगे नो वायावेइ वायावेइ नाममेगे नो पाएइ एगे वाएइ वि वायावेइ वि एगे नो वाएइ नो वायावेइ, चत्तारि पुरिसजाया पन्नता तं जहा-पडिच्छति नामभेगे नो पडिच्छावेति पडिच्छावेति नाममेगे नो पडिच्छति एगे पडिच्छति वि पडिच्छावेति वि एगे नो पडिच्छति नो पडिच्छावेति, चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता तं जहा-पुच्छइ नाममेगे नो पुच्छायेइ पुच्छावेइ नाममेगे नो पुच्छइ एगे पुच्छइ वि पुच्छावेइ वि एगे नो पुच्छइ नो पुच्छावेइ, चत्तारि पुरिसजावा पन्नत्ता तं जहा-बागरेति नासमेगे नो वागरायेति वागरावेति नासमेगे नो वागरेति एगे वागरेति वि वागरावेति एगे नो वागरेति नो वागरावेति, चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता त जहा-सतधरे नामभेगे नो अत्यधरे अत्यधरे नाममेगे नो सुत्तधरे एगे सुत्तधरे वि अत्यधरे वि एगे नो सुत्तधरे नो अत्यधरे ।२५५1-255 (२७०) चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररपणो चत्तारि लोगपाला पन्नता तं जहासोमे जमे वरुणे वेसमाणे एवं बलिस्सवि-सोमे जमे वेसमणे वरुणे धरणस्स-कालपाले कोलपाले सेलपाले संखपाले भूयाणंदस्स-कालपाले कोलपाले संखपाले सेलपाले वेणुदेवस्सचिते विचित्ते चित्तपक्खे विचित्तपक्खे येणदालिस्स-चित्ते विचित्ते विचित्तपस्खे चित्तपक्खे हरिकंतस्स-पभे सुप्पभे पभकंते सुप्पभकते हरिस्सहस्स-पमे सुप्पभे सुप्पभकते पभकते अग्गिसिहस्स तेऊ तेउसिहे तेउकते तेउप्पभे अग्गिमाणवस्स-तेऊ तेउसिहे तेउप्पभे तेउकते पुण्णस्स-रूवे रूयंसे रूबकते रूवप्पभे विसिट्ठस्स-रूये सवंसे रूवप्पभे रूवकते जलकंतस्सजले जलरते जलकते जलप्पमे जलप्पहस्स-जले जलरते जलप्पहे जलकंते अमितगतिस्सतुरियगति खिप्पगती सीहगती सीहविक्कमगती अमितवाहणस्स तुरियगती खिप्पगती सीहविककमगती सीहगती वेलंबस्स-काले महाकाले अंजणे रिटे पंभजणस्स-काले महाकाले रिटे अंजणे धोसस्स-आवत्ते वियावते नंदियावते महानंदियावत्ते महाधोसरस-आवत्ते वियावत्ते महानंदियावत्ते नंदियावत्ते सक्कस्स-सोमे जमे वरुणे वेसमणे ईसाणस्स-सोमे जमे वेसमणे वरुणे एवं-एगंतरिता जाव अचुतस्स चउव्विहा वाउकुमारा पन्नत्ता तं जहा-काले महाकाले लंबे पभंजणे ।२५६।-256 (२७१) चउब्विहा देवा पन्नत्ता तं जहा-भवणवासी वाणमंतरा जोइसिया विमाणवासी ।२५७1-257 (२७२) चउबिहे पमाणे पण्णत्ते तं जहा- दव्यप्पमाणे खेत्तप्पमाणे कालप्पमाणे भावपमाणे ।२५८1-258 (२७३) चत्तारि दिसाकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ तं जहा-या टूयंसा सुरूवा ह्यावती चत्तारी विज्जुकुमारीमहत्तरियाओ पन्नत्ता ओ तं जहा चित्ता चित्तकणगा सतेरा सोतामणी ।२५९।-259 (२७४) सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो मज्झिमपरिसाए देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिती पन्नता ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो मज्झिमपरिसाए देवीणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पन्नत्तां ।२६०-260 (२७५) चउब्धिहे संसारे पण्णत्ते तं जहा-दव्वसंसारे खेत्तसंसारे कालसंसारे भाव For Private And Personal Use Only
SR No.009729
Book TitleAgam 03 Thanam Angsutt 03 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages170
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size3 MB
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