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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूयगडो १/२/२/१४७ (१४०) वाहेण जहा व विच्छए अबले होइ गवं पचोइए से अंतसो अप्पयामए नाईवचए अवले विसीयइ ॥१४७।-5 (१४८) एवं कामेसणाविऊ अज्ज सुए पयहेज्न संयवं कामी कामे न कामए लद्धे वा वि अलद्ध कण्हुइं ॥१४८||-6 (१४१) पा पच्छ असाहुया भवे अच्चेही अणुसास अप्पगं अहियं च असाहुं सोयई से पणई परिदेवई बहुं ॥१४९|-7 (१५०) इह जीवियमेव पासहा तरुण एव वाससयस्स तुई इत्तरवासं व युज्झहा गिद्ध नरा कामेसु मुछिया १५०11-8 (१५१) जे इह आरंभनिस्सिया आयदंड एगंतलूसगा गंता ते पावलोगयं चिररायं आसरिवं दिसं ||१५१11-9 (१५२) न य संखयमा जीवीय तह वि य बालजणो पगब्बई पचुप्पण्णेण कारियं के दर्ड्स परलोगमागए ॥१५२||-10 (१५३) अदक्खुव दखुवाहियं सद्दहसू अदक्खुदंसणा हंदि हु सुणिरुद्धदंसणे मोहणिजेण कडेग कम्मणा ॥१५३||-11 (१५४) दुक्खी मोहे पुणो पुणो निविदेज सिलोगपूयणं एवं सहिएऽहिपासए आयतुलं पाणेहिं संजए। ||१५४11-12 {१५५) गारं पि य आवसे नरे अणुपुव्वं पाणेहि संजए समया सव्वस्य सुब्बए देवाणं गच्छे सलोगयं ।।१५५||-13 (१५६) सोचा भगवाणुसासणं सचे तत्य करेझुष का सव्वत्य विणीयमच्छेरे उंछं भिक्खुं विसुद्धमाहरे ||१५६11-14 (१५७) सव्यं नया अहिट्ठए धम्पट्ठी उपहाणवीरिए गुत्ते जुत्ते सया जए आयपरे परमायतट्ठिए। ||१५७||-15 (१५८) वित्तं पसवो य नाइओ तं बाले सरणं ति मण्णई एए मम तेसि वा अहं नो तामं सरणं न यिाई ||१५८||-16 (१५९) अब्मागमियम्मि वा दुहे अहयोवक्क मिए भवतिए एगस्स गई य आगई विदुमंता सरणं न मण्णई ॥१५९|-17 (१६०) सम्बे सयकम्मकप्पिया अवियत्तेण दुहेण पाणिणो हिंडति भयाउला सदा जाइजरामरणेहिऽभिट्ठया ॥१६०।1-18 (१६१) इणमेव खणं वियाणिया नो सुलभं वहि च आहियं एवं सहिएऽहियासए आह जिणे इणमेव सेसगा ॥१६१।-19 (१६२) अभविंसु पुरा दि भिक्खयो आएसा वि भविंसु सुव्यया । एयाइं गुणाई आहु ते कासवस्स अणुधम्मचारिणो ॥१६२३॥-20 (१६३) तिबिहेण वि पाण मा हणे आयहिए अणियाण संबुडे एवं सिद्धा अणंतगा संपड़ जे य अणागयावरे ॥१६३।।-21 (१६४) एवं से उदाहु अणुतरनाणी अणुत्तरदंसी अणुतरनागदसणधरे अरहा नायपुत्ते भगवं वेसालिए विचाहिए - त्ति बेपि ।।१६४॥-22 • बीए अध्ययणे तइओ उहेसो सपत्तो . बीअं अजमयणं सपत्तं . For Private And Personal Use Only
SR No.009728
Book TitleAgam 02 Suyagado Angsutt 02 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages122
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 02, & agam_sutrakritang
File Size2 MB
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