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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० __ सूपगडो १/२/१/११२ (११२) जो परिभवई परं जणं संसारे परिवत्तई महं अदु इंखिणिया उ पाविया इह संखाय मुणी न मज्जई ||११२॥2 (११३) जे यावि अणावगे सिया जे वि य पेसगमेसगे सिया इद मोणपयं उबट्ठिए नो लज्ने समयं सया चरे ११३||-3 (११४) सम अण्णयरम्म संजमे संसुद्धे समणे परिव्यए । जा आवकहा समाहिए दविए कालमकासि पंडिए ११४||-4 (११५) दूरं अणुपस्सिया मुणी तीयं धम्पसणागयं तहा। पुढे फरुसेहिं माहणे अवि हण्णू समयंसि रीयइ ११५।।-5 (११६) पण्णसमत्ते सया जए समता धम्ममुदाहरे मुणी। सुहसे उसया अलूसए नो कुन्झे नो माणि माहणे ११६||-6 (११७) बहुजणणमणम्मि संवुड़े सव्वठेहिं नरे अणिस्सिए हरए व सया अणाविले धम्म पादुरकासि कासवं ॥११७।।-7 (११८) वहवे पाणा पुढो सिया पत्तेयं समयं समीहिया जे मोणपयं उवट्ठिए विरई तत्य अकासि पंडिए ॥११८||-8 (११९) धम्मस्स य पारगे मुणी आरंभस्स य अंतए ठिए सोयंति य णं ममाइणो नो य लभंतो निययं परिग्गह ॥११९।।-9 (१२०) इहलोगे दुहादहं विऊ परलोगे य दुहं दुहावहं विद्धंसणधम्ममेव तं इह विजं को गारमावसे ॥१२०||-10 (१२१) महया पलिगोय जाणिया जा दिय बंदणपूयणा इहं सुहुमे सल्ले दुरुद्धरे विउमंता पयहिज्ज संथवं (१२२) एगे चरे ठाणमासणे सयणे एगे समाहिए सिया भिक्खू उवहाणवीरिए वइगुते अज्झत्थसंबुडे ॥१२२।।-12 (१२३) नो पोहे न यावपंगुणे दारं सुपणधरस्स संजए पुढे न उदाहरे वइ न समुच्छे नो संथरे तणं ||१२३।1-13 (१२४) जत्यत्यमिए अणाउले समविसमाणि पुणी हियासए चरगा अदुवा वि मेरवा अदुवा तत्य सिरीसिवा सिवा १२४||-14 (१२५) तिरिया मणुया य दिव्यमा उवसग्गा तिविहा धियासए लोमादीयं पि न हरिसे सुण्णगारगए महामुणी ॥१२५|-15 (१२६) नो अमिकखेज जीवियं नो वि य पूयणपत्थए सिया अट्मत्यमुवेति भेरवा सुण्णागारयस्स भिरबुणो ॥१२६||-16 (१२७) उवणीयतरस्स ताइणो भयमाणस विविक्कमासणं सामाइयमाहु तस्स जं जो अप्पाणं मए न दंसए ॥१२७||-17 (१२८) उसिणोदगतत्तभोइणो घमठियस्स मुणिस्स हीमतो संसग्गि असाहु राइहिं असपाही उ तहागयस्स वि ॥१२८||-18 (१२९) अहिगरणकरस्स भिक्खुणो वयमाणस्स पसज्झ दारुणं । अट्ठ परिहायई बहू अहिगरणं न करेज्ज पंडिए ॥१२९।।-19 ||१२१||-11 1१२६11-16 For Private And Personal Use Only
SR No.009728
Book TitleAgam 02 Suyagado Angsutt 02 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages122
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 02, & agam_sutrakritang
File Size2 MB
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