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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आपारो १/५/५/१७४ ( १७४ ) वितिगिच्छ समावत्रेणं अप्पापेणं नो लभति समाधिं सिया वेगे अणुगच्छति असिचा वेगे अणुगच्छंति अणुगच्छमाणेहिं अणणुगच्छ्रमाणे कहं न निव्विजे । १६२-161 ( १७५) तमेव सच्चं नीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं । १६३ - 162 ( १७६) सस्सि णं समणुण्णस्स संपव्वयमाणस्स समियंति मण्णमाणस्स एगया समिया होइ समिति मण्णमाणस्स एगया असमिया होइ असमियंति मय्णमाणस्स एगचा असमिया होइ असमियंति पण्णमाणस्स एगया असमिया होइ समियंति मय्णमाणस्स समिया वा असमिया वा समिया होइ उवेहाए समिति मण्णमाणस्स समिया वा असमिया वा असमिया होइ उबेहाए उबेहमाणो अणुवेहमाणं बूया उवेहाहि समियाए इच्चेवं तत्थ संधी झोसितो भवति उट्टियस्स ठियस्स गतिं समणुपासह एत्यवि बालभावे अप्पाणं नो उवदंसेज्जा | १६४/- 163 २० ( १७७ ) तुमसि नाम सचैव जं हंतव्वं ति मनसि तुमंसि नाम सचेव जं अज्जावेयव्वं ति मनसि तुमंस नाम सचैव जं परितावेयव्वं ति मनसि तुमंसि नाम सचैव जं परियेतव्यं ति मन्त्रसि तुमंस नाम सद्येव जं उद्दवेयव्वं ति मन्त्रसि अंजू चेय पडिबुद्ध जीवी तम्हा न हंता न विधायए अणुसंवैयणमप्पाणेणं जं हंतव्वं ति नाभिपत्थए ।१६५/- 164 (१७८) जे आया से विष्णाया जे विष्णाया से आया जेण विजापति से आया तं पडुपसिखाए एस आयावादी समियाए- परियाए विवाहिते त्ति वेमि । १६६ /- 165 पंचमे अज्झयणे पंचमो उद्देसो समत्तो - R - - छ टू टो उसो : ( १७९ ) अणाणाए एगे सोवट्ठाणा आणाए एगे निरुवट्ठाणा एतं ते मा होउ एवं कुसलस्स दंसणं तदिट्ठीए तम्मुत्तीए तप्पुर का रे तरसण्णी तन्निवेसणे 19६७/- 166 (१८० ) अभिभूय अदक्खू अणभिभूते पभू निरालंबणयाए जे महं अबहिमणे पवाएणं पवायं जाणेज्जा सहसम्मइयाए परवागरणेणं अण्णेसिं वा अंतए सोचा । १६८/- 167 (१८१ ) निद्देसं नातिबट्टेजा मेहावी सुपडिलेहिय सव्वतो सच्चयाए सम्मावेव समभिजाणिया इहारामं परिण्णाय अल्लीण-गुत्तो परिव्वए निट्ठियट्टी वीरे आगमेण सदा परकमेजासि त्ति बेमि | १६९/- 168 (१८२) उड्ढं सोता अहे सोता तिरियं सोता वियाहिया एते सोया वियक्खाया जेहिं संगति पासहा For Private And Personal Use Only ।।१३।।-1 - (१८३ ) आवट्टं तुं उवेहाए एत्थ विरमेज वेववी विणएत्तु सोयं निक्खम्म एस महं अकम्मा जाणति पासति पडिलेहाए नावखति इह आगतिं गतिं परिण्णाय 1990/- 169 (१८४) अच्चेइ जाइ - मरणस्स वट्टमग्गं वक्खाय रए सव्वे सरा णियद्वंति तक्का जत्थ न विज्जइ मई तत्थ न गहिया ओए अप्पतिद्वाणस्स खेयत्रे से न दोहे न हस्से न वट्टे न तंसे न चउरंसे न परिमण्डले न किण्हे न नीले न लोहिए न हालिद्दे न सुकिल्ले न सुभिगंधे न दुरभिगंधे न तित्ते न कडुए न कसाए न अंबिले न महुरे न कक्खडे न पउए न गरुए न लहुए न सोए न उन्हे न जिद्धे न लक्खेन काऊ न रुहे न संगे न इत्थी न पुरिसे न अण्णहा परिण्णे सण्णे उवमा न विज्ञए अरुवी सत्ता अपवरस पयं नत्थि ।१७१1-170
SR No.009727
Book TitleAgam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size3 MB
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