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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुपखंभो-१, मन्नयणं-२, रद्देतो-६ (१०३) पंत लूहं सेर्वोते वीरा सपत्तदंसिणो एस ओघंतरे मुणी तिपणे मुते विरते वियाहिते त्ति वेमि ।१००।-99 (१०४) दुव्वसु मुणी अणाणाए तुच्छए गिलाए वत्तए एस वीरे पसंसिए अग्रेइ लोयसंजोयं एस नाए पवुच्चइ ।१०१1-100 (१०५) जं दुक्खं पवेदितं इह माणवाणं तस्स दुक्खस्स कुसला परिण्णमुदाहरंति इति कप्प परिण्णाय सव्वसो जे अणण्णदंसौ से अणण्णारामे जे अणण्णरापे से अणण्णदंसी जहा पुण्णस्स कत्थइ तहा तुच्छस्स कत्थइ जहा तुच्छस्स कत्थई तहा पुण्णस्स कत्थइ ।१०२1-101 (१०६) अवि य हणे अणादिवमाणे एत्थंपि जाण सेयंति नत्यि के यं पुरिसे कं च नए एस दीरे पसंसिए जे वद्धे पडिमोयए उड्ढे अहं तिरियं दिसासु से सव्वतो सव्वपरिण्णचारी न लिप्पई छणपएण वीरे से मेहावी अणुग्धायणस्स खेयपणे जे य बंधप्पमोक्खमपणेसी कुसले पुण नो वद्धे नो मुक्के ।१०३।-102 (१०७) से जंच आरंभे जं च नार भे अणारद्धं च नारभे छणं छणं परिणाय लोगसण्णं च सव्वसो ११०४1-103 (१०८) उद्देसो पासगस्स नत्यि याले पुण निहे कामसमणुण्णे असमियदुक्खे दुखी दुक्खाणमेव आवर्ल्ड अणुपरिवट्टइ - ति वेमि ।१०५|-104 .बीए अजवणे छटो उद्देसो सपत्तो-बीअं अनायणं समतं . तइयं अज्झयणं-सीओसणिज्जं | -: पट मो - उई सो :(१०९) मुत्ता अमुणी सया मुणिणो सया जागरंति । १०६/-105 (११०) लोचंसि जाण अहियाय दुक्खं समयं लोगस्स जाणिता एस्थ सत्योवरए जस्सिमे सदा य रुवा य गंधा य रसा य फासा प अभिसमत्रागया भवति ।१०७/-106 (१११) से आयवं नाणवं वेयवं धम्मवं बंभवं पण्णाणेहि परियाणइ लोयं मुणीति वच्चे धमविउत्ति अंजू आवसोए संगमभिजाणति ।१०८1 -107 (११२) सीओसिणच्चाई से निग्गंथे अरइ-रइ-सहे फरुसियं नो वेदेति जागर-वेरोवरए वीरे एवं दुक्खा पमोक्खसि जरामच्चुवसोवणीए नरे सययं मूढे धम्मं नाभिजाणति ।१०९।-108 (११३) पासिय आउरे पाणे अप्पपत्तो परिब्बए मंता एयं मइमं पास आरंभजं दुक्खमिणं ति नचा माई पमाई पुणरेइ गटभं उबेहमाणो सद्द-रुवेस अंजू माराभिसंकी मरणा पमुघति अप्पमत्तो कामेहिं उबरतो पावकम्मेहिं धीरे आयगुत्ते जे खेयपणे जे पनवजाय-सत्थस खेवणे अकम्मरस ववहारो न विनइ कम्मुणा उवाही जायइ कम च पडिलेहाए ११07-109 (११४) कम्पमूलं च जं छणं पडिलेहिय सव्वं समायाय दोहिं अंतेहिं अदिस्समाणे तं परिण्णाय मेहादी विदिता लोगं बंता लोगसपणं से मइमं परक्कमेजसि -त्ति बेमि ।१११। -110 .तइए अज्झयणे परमो उद्देसो समत्तो. __ - बी ओ - उद्दे सो :(११५) जातिं च बुढि च इहज पास भूतेहिं जाणे पडिलेए सातं तम्हा तिविज परमंति नया समत्तदंसी न करेति पावं For Private And Personal Use Only
SR No.009727
Book TitleAgam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size3 MB
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