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________________ *** भामुख... मेरे जन्मदाता संस्कारदाता, धर्मदाता व दीक्षा दिलवाने वाले ठपकाही पूज्य पिताश्री हुकमीचंदजी व मातुश्री गंगादेवी की मांडाणी बजट में हुए उनके जीवित महोत्सव के समय से ही निरंतर भावणाची कि हमारे रहते आपका एक चातुर्मास चेाई में हो जाय तो हमारे मन की एक तमना पूरी हो जाय. देव-गुरू-धर्म की कृपा से उनकी यह भावना पूरी हुई. पूज्य गुरूदेव राष्ट्रसंत आचार्य देव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी का निर्देश हुआ कि तुम्हें दक्षिण में चातुर्मास करने जाना है, और हमारा विहार इस ओर हो गया. चेन्नई चातुर्मास मेरे जीवन का अविष्मरणीय चातुर्मास बा पू. पिताश्री की भावना इस तरह की पुस्तक छपवाने की थी, और काफी समय से मुझे कह भी रहे थे. व्यस्तता आदि कारणों से यह कार्य टल रहा था. अब अंततः “आराधना गंगा" की रूप में यह कार्य पूर्ण हो रहा है. आशा है कि मैं किसी हद तक उनकी अपेक्षा को न्याय दे पाया हूँ. इस पुस्तक में जो कुछ भी है ज्यादातर वह अलग-अलग जगहों से संकलित कर सम्मार्जित किया हुआ है. मैं उन सब आधार प्रदाताओं का यहाँ ऋण स्वीकार करता हूँ. यदि इस पुस्तक में मेडा कोई योगदान है तो वह है पंचसूत्र का अनुवाद. दीक्षा के प्रथम वर्ष से पंचसूत्र के पांचों सूत्रों का अनेकों बार भावन किया है. प्रथम व चतुर्थ सूत्र का तो सेंकड़ों बार भावन किया है बड़ी मस्ती से किया है, अलग-अलग मनोदशाओं मे किया है. बोध, अनुभव व परिपक्वता की विविध भूमिकाओं में किया है. प्रथम सूत्र व अन्य सूत्रों के कुछ चुने हुए अंशों की वांचना देने का भी उत्तम आत्मिक पुकार धराने वालों को देने का गत तीन वर्षों में अनेकबार अवसर बना है. हर बार पंचसूत्र मुझे नये-नये आयामों और गायों में से ही उभ कर मिला है. इसका फायदा मुझे और श्रोताओं दोनों को बहोत अलग किस्म का हुआ है,
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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