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________________ पर्युषण नजदीक आते-आते सकल संघ व हमारे परिवार में तप का माहौल खड़ा होने लगा. परिवार की तीन पुत्रवधू श्रीमति विमलादेवी नरपतकुमार, श्रीमति निर्मलादेवी यशवंतकुमार एवं श्रीमति संगीतादेवी अरविंदकुमार ने अति उग्र ऐसी मासक्षमण की तपस्या की और साथ ही पहिवाट एवं अन्य संबंधीयों में भी छोटी बड़ी तपस्या की झड़ी लग गई, हमारा परिवार धन्य हो गया. इसी चातुर्मास दौडान और भी एक ऐतिहासिक कार्य हुआ, चेन्नई संघ का श्री विजयहीरसूरीश्वरजी ज्ञान भंडार, चंदनबाला भवन में बरसों से उपेक्षित हालत में पड़ा था. ट्रस्टीयों द्वारा किये गये अनेक प्रयत्नों के बावजूद भी उसका उद्धार नहीं हो रहा था. चातुर्मास दौरान ही पूज्यश्री की सतत प्रेरणा होती हद्धी व मार्गदर्शन होता डा. उसके फलस्वरूप समर्पित युवक-युवतियों की एक टीम गठित हो गई और बड़े सुंदर तटीके से ज्ञानभंडार के उद्वार का कार्य प्रारंभ हो गया. चंदनबाला भवन एवं नया मंदिराजी में वांधणालय प्रारंभ कराने का भी तय हुआ. उसमें हो चंदनबाला भवन का वाचनालय प्रारंभ हो गया है. चतुर्विध श्री संघ की हाजरी में ज्ञानभंडार का बड़े धामधूम से ज्ञानपंचमी के शुभ दिन उद्घाटन भी हुआ, साथ ही और भी एक नई ऐतिहासिक बात का सूत्रपात हुआ. www.jainelibrary.org नाम की एक बहु-उद्देशीय website भी पूज्यश्री के मार्गदर्शन में प्रारंभ की गई, जिसमें इस ज्ञानभंडार की सूची पृथ्वी जा रही है. सो विश्व के किसी भी कोने में एह कह कोई भी जिज्ञासु देख सकता है. इस website की सबसे बड़ी खासीयत यह है कि इसमें विश्व का कोई भी जैन ज्ञानभंडार सदस्य बनकर अपनी सूची इस पर upload कर सकता है, चेई के ही अनेक भंडाहो ने इस website पह अपनी सूची upload करने की रूचि दिखाई है. क्रमशः यह काम भी साकार होगा. ज्यूँ ज्यूँ इस website पर ज्ञानभंडारों की संख्या व पुस्तक संख्या बढ़ती जाएगी, त्यूँ त् समया जैन संघ के लिए इसकी उपयोगिता भी बढ़ती जाएणी, पुस्तक समीप के माह में होने के बावजूद भी पूज्य साधुसाध्वीजी भगवंतों को ओठ विद्वानों को कूट-बूट के ज्ञानभंडारों से पुस्तके मंगाने का जो परिश्रम करना पड़ता है वह नहीं करना पड़ेगा. पूज्यश्री ने कोबा में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में दी सेवा के व्यापक अनुभव का लाभ आज आहे चेशई संघों एवं विश्व के संघों एवं विद्वानों को इस तरह से मिला है.
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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