SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० त्रि-भुवन नायक तुं धणी, मही मोटो महाराज. मोटे पुण्ये पामीयो, तुम दरिशन हुं आज. आज मनोरथ सवि फल्या, प्रगट्या पुण्य कल्लोल. पाप करम दूरे टल्यां, नाठां दुःख दंदोल. पंचम काले पामवो, दुलहो प्रभु देदार. तो पण तेना नामनो, छे मोटो आधार. प्रभु नामनी औषधि, खरा भावथी खाय. रोग शोक आवे नहीं, सवि संकट मिट जाय. पांच कोडीने फूलडे, पाम्या देश अढार. राजा कुमारपालनो, वो जय-जय-कार. छे प्रतिमा मनोहारिणी, दुःखहरी श्री वीर जिणंदनी; भक्तोने छे सर्वदा सुखकरी, जाणे खीली चांदनी. आ प्रतिमाना गुण भाव धरीने, जे माणसो गाय छे; पामी सघलां सुख ते जगतनां, मुक्ति भणी जाय छे. आव्यो शरणे तमारा जिनवर! करजो आश पूरी अमारी; नाव्यो भवपार मारो तुम विण जगमां सार ले कोण मारी?. गायो जिनराज! आजे हरख अधिकथी परम आनंदकारी; पायो तुम दर्श नासे भव-भय-भ्रमणा नाथ! सर्वे अमारी. भवोभव तुम चरणोनी सेवा, हं तो मांग छं देवाधिदेवा, सामु जुओने सेवक जाणी, एवी उदयरत्ननी वाणी. दादा तारी मुखमुद्राने, अमिय नजरे निहाळी रह्यो, तारा नयनोमांथी झरतुं, दिव्य तेज हुँ झीली रह्यो; क्षणभर आ संसारनी माया, तारी भक्तिमां भूली गयो, तुज मूर्तिमा मस्त बनीने, आत्मिक आनंद माणी रह्यो. देखी मूर्ति श्री पार्श्वजिननी, नेत्र मारा ठरे छे, ने हैयुं आ फरी फरी प्रभु, ध्यान तारुं धरे छे,. परमात्मा की भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ ति है. १० ११ १३
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy