SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाच मताम 04 श्री आपकाचार जी जीवनज्योति इसमें किसकी भूमिका प्रमुख रही, तारण पंथ का मूल आचार क्या है और कैसे पांच मतों में विभाजित चौदह ग्रंथों का विशाल भंडार है। बना? यह सभी तलस्पर्शी रहस्य क्रमानुसार चारों भागों में विशद् विवेचन सहित पांच मतों में चौदह ग्रंथों की रचना इस प्रकार है - स्पष्ट हुए हैं। समाज के बंधुओं की या जो जीव इन रहस्यों को समझना चाहते हैं विचार मत में -श्री मालारोहण, पण्डितपूजा, कमलबत्तीसी जी। उन सबकी समस्त जिज्ञासाओं का समाधान है -“तारण की जीवन ज्योति"* आचार मत में - श्री श्रावकाचार जी। जो संत तारण स्वामी के जीवन परिचय को विविध आयामों से स्पष्ट करती है। सार मत में सबसे बड़ी विशेषता यह है कि पूज्य श्री महाराज जी की लेखनी इतने गहरे तल ममलमत में -श्री चौबीस ठाणा, ममल पाहुड़ जी। में पहुंची है कि अनेक घटनाओं के घटते हुए भी सद्गुरू तारण स्वामी का केवल मत में -श्री खातिका विशेष, सिद्ध स्वभाव, सुन्न स्वभाव, वीतरागी व्यक्तित्व अलग ही झलकता है जो अपने आपमें परम सत्य है। छद्मस्थवाणी तथा नाममाला ग्रंथ हैं। साठ वर्ष की उम्र में संत तारण स्वामी ने निग्रंथ वीतरागी दिगम्बरी दीक्षा 8 इन पाँच मतों में विचार मत में-साध्य, आचार मत में-साधन, सार मत (मुनि दीक्षा) ग्रहण की यह प्रकरण भी आनंदप्रद होने के साथ-साथ हृदय को में-साधना, ममलमत में-सम्हाल (सावधानी) और केवल मत में-सिद्धि का अनेक प्रकार की झांकियां दिखलाते हैं तथा तारण स्वामी के इस तरह दर्शन मार्ग प्रशस्त किया है। इसके लिये आधार दिया है क्रमश: भेदज्ञान, तत्वनिर्णय, कराते हैं जैसे कि सब प्रत्यक्ष में ही हो रहा हो। वस्तुस्वरूप, द्रव्य दृष्टि और ममलस्वभाव का, जिनसे उपरोक्त साध्य आदि श्री जिन तारण स्वामी का मंडलाचार्य होना, उनके संघ में स्थित सात की सिद्धि होती है। निग्रंथ मुनिराजों द्वारा धर्म प्रभावना होना, आर्यिकाओं द्वारा वीतराग धर्म की इन ग्रंथों में आध्यात्मिक दृष्टिकोण से आगम और अध्यात्म के महिमा होना. अनेक ग्रामों, नगरों से समह रूप में जैन- अजैन बंधओं एवं 5 सैद्धांतिक विषय प्रतिपादित किये गये हैं। श्री गुरू तारण स्वामी की सभी राजा-महाराजाओं का कुटम्ब सहित आना और तारण पंथी होना, विशेष धर्म रचनायें मौलिक और अपने आपमें विशेष महत्वपूर्ण होते हुए संसार के दःखों प्रभावना द्वारा लाखों लोगों में धर्म की रुचि और आध्यात्मिक जागरण, साधर से मुक्त होने तथा साधनामय जीवन बनाकर आनंद परमानंद मयी अविनाशी दशा में भी श्री जिन तारण स्वामी के ऊपर उपसर्गों का होना, महान क्रांति का मुक्ति पद प्राप्त करने के लिये मानव मात्र को अमर संदेश दे रही हैं। एक इतिहास बनना यह सब अलग-अलग प्रकरणों में वर्णन है। । भारतीय संस्कृति के जीवन में अध्यात्म संजीवनी के द्वारा अंतर अंत में विक्रम संवत् १५७२ में श्री निसई जी ( मल्हारगढ़) के वन में जागरण रूप प्राणों का संचार कर देने वाले महान क्रांतिकारी संत आचार्य श्री वीतरागी संत श्री गुरू तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज ने समाधि पूर्वक जिन तारण स्वामी जैसे वीतरागी सद्गुरू को पाकर यह भारतीय संत परम्परा भौतिक शरीर का त्याग कर सर्वार्थ सिद्धि गमन किया, इन सभी घटनाओं का धन्य है, कृत कृत्य है। जिसमें ऐसे महापुरुष ने जन्म लिया जिन्होंने वृक्ष की तरह विशद विवेचन तारण की जीवन ज्योति में आया है, जो सभी जीवों को प्रमदित5 स्वयं कष्ट सहकर भी फल देते रहने की भांति स्वयं उपसर्गों को सहन करते ५ 9 आनंदमय करने वाला और प्रत्यक्षवत् ही श्रीगरू का दर्शन कराने वाला है। हुए भी आत्म कल्याण के लक्ष्य पर दृढ़ता से स्थिर रहकर देश के मानव समाज आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण स्वामी का जैसा आध्यात्मिक को हितकारी अध्यात्म संदेश दिया जिसके फलस्वरूप देश में निवास कर रहे वीतरागी व्यक्तित्व था वैसा ही उनके द्वारा लिखा गया साहित्य अध्यात्म की सभी जातियों के लाखों लोग उनके बताये हुए मार्ग पर चले। अनुभूतियों सहित है, जो जीव मात्र के लिये कल्याणकारी है। तारण साहित्य ईस्वी सन् १९८६ में धर्म दिवाकर स्व.पूज्य श्री गुलाबचन्द जी महाराज
SR No.009722
Book TitleShravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherGokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy