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________________ भजन- ४९ पल में का होवे राम, पल को ठिकानो कछु नहीं है। अपनी सुध राखो राम, देखो जा सद्गुरु ने कही है ॥ १. देहालय सोइ सिद्धालय है, इसमें भेद नहीं है। जो जन इसकी श्रद्धा करते, मुक्ति पाते वही हैं...... एक समय पहले मृगराजा, मृगा हे थो खा रहो । उस घड़ी में शुद्ध दृष्टि हो, शुद्धातम को ध्या रहो...... एक समय पहले श्रेणिक ने, नरक आयु थी बांधी। २. ३. ४. ५. ६. श्री आवकाचार जी ७. उन्हीं मुनि के चरणों में जा, ध्यान समाधि साधी..... सुमेरु मुनि एक क्षण पहले, राजा से थे लड़ रहे । जे समय वे केवलज्ञानी, समवशरण में सज रहे ...... धर्म की महिमा बड़ी अपूर्व है, इसको कोई न जानी । जिनवाणी कबसे समझा रही, फिर भी एक न मानी..... धर्म कर्म दोनों की गति को, कोई ने भी नहीं जानी। ज्ञानानंद चेत जाओ अब, बनो सत्य श्रद्धानी..... अपनी सुरत रखो निशिवासर, अपनो ध्यान लगाओ। कर्मों में वृथा मत उलझो, इधर उधर मत जाओ...... वास्तव में तो सम्यक्दर्शन पर्याय ही है; किन्तु जैसा गुण है वैसी ही उसकी पर्याय प्रगट हुई है, इस प्रकार गुण पर्याय की अभिन्नता बताने के लिये कहीं-कहीं उसे सम्यक्त्व गुण भी कहा जाता है किन्तु वास्तव में सम्यक्त्व पर्याय हैं, गुण नहीं । जो गुण होता है वह त्रिकाल रहता है, सम्यक्त्व त्रिकाल नहीं होता किंतु उसे जीव जब अपने सत्पुरुषार्थ से प्रगट करता है तब होता है इसलिये वह पर्याय है । SYARAT GRA AV Y Z AA YA २८२ भजन- ५० १. दुनियां की क्यों चिंता करता, दुनियां से क्या काम रे । सिद्ध समान ध्रौव्य अविनाशी, तू तो आतम राम रे ॥ घर परिवार नहीं है तेरा, अरस अरूपी चेतन है । धन शरीर सब जड़ पुद्गल हैं, रूपी द्रव्य अचेतन हैं । मोह में इनके मरा जा रहा, भूल रहा निज धाम रे ..... पर का तू कुछ कर नहीं सकता, होना जाना निश्चित है। तेरे करे से कुछ नहीं होता, तू क्यों रहता चिंतित है । अपना ध्यान लगा ले पगले, तू तो है शुद्धात्म रे...... क्रमबद्ध पर्याय सब निश्चित होना है वह हो ही रहा । तेरा किससे क्या मतलब है, तू काहे को रो ही रहा ।। तेरा किससे क्या नाता है, तू तो है ध्रुव धाम रे...... ज्ञानानंद स्वभावी आतम, पर का कुछ न करता है। मोह राग में फँसा हुआ खुद, इसका सुख दुःख भरता है । पर की ओर देखता है तू, इससे है बदनाम रे...... २. ३. ४. १. ३. आध्यात्मिक भजन ४. भजन-५१ अपने में खुद ही समा जइयो, आतम वीतरागी । पर से का मतलब स्वयं को देखो। निज सत्ता शक्ति को अपनी लेखो अपने... सिद्ध स्वरूपी शुद्धतम कहाते । खुद ही जागो अब किसको जगाते...अपने..... अरस अरूपी चतुष्टय के धारी । शुद्ध बुद्ध ज्ञायक हो मुक्ति बिहारी अपने..... ज्ञानानन्द स्वभावी परमानन्द धारी । ब्रह्मानन्द सुनो विनती हमारी... अपने..... 5e56
SR No.009722
Book TitleShravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherGokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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