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________________ श्री श्रावकाचार जी भजन-२७ इक दिन जाने है चेतनवा, काये उलझो। १. आयु अंत जिस दिन आयेगा, बचा सके नहीं कोई। घर परिवार सब छूट जायेगा, अपनी दुर्गति होई. २. कौन से तुम्हरो का मतलब है, फिर क्यों अंधा हो रहे। पर के पीछे मरे जा रहे, मुफत जिन्दगी खो रहे. ३. देख रहे हो जान रहे हो, फिर भी उल्टे मर रहे। पर के बीच में बोल रहे हो, उठा पटक ही कर रहे . ४. भेदज्ञान तत्व निर्णय कर रहे, फिर काहे भरमा रहे। त्रिकाली पर्याय क्रमबद्ध, कौन हे कहा बता रहे. खुद ही मान लो दृढता धर लो, दुर्गति से बच जाओ। ध्रुव तत्व का ध्यान लगाओ, मोक्ष परम पद पाओ ६. अरस अरूपी ज्ञान चेतना, शुद्ध बुद्ध अविनाशी। ज्ञानानन्द स्वभावी हो तुम, सहजानन्द सुख राशी ७. कुछ दिन के मेहमान बचे हो, अपनी बात बना लो। वीतराग बन करो पुरुषार्थ, शुद्धातम को ध्यालो .. ८. इधर उधर बिल्कुल मत भटको,कोई की तरफ न देखो। ममल स्वभाव में लीन रहो नित, यह सब कपड़े फेंको भजन-२८ जगत में स्वारथ का सब काम। १. बिन स्वारथ कोई बात न पूछे, लेयन कोई नाम...जगत..... २. मात पिता भगिनी सुत नारी, इन्हें चाहिये दाम...जगत..... ३. सब संसार स्वार्थ से चलता,बिन स्वारथ क्या काम... जगत..... ४. यह शरीर भी तब तक अच्छा , जब तक इस पर चाम...जगत..... ५.कोई का कोई नहीं है जग में, भुगतो खुद अंजाम...जगत..... ६. अब भी चेत जाओ ज्ञानानन्द, बन जाओ निष्काम...जगत..... आध्यात्मिक भजन loo भजन-२९ मच रही मच रही रे जा जय जयकार, चलो रे अब तो मुक्ति चलो। १. साधु पद की दीक्षा ले लो, पाप परिग्रह छोड़ो। संयम तपकी करो साधना, अपने मन को मोड़ो. २. धर्म की महिमा देखो सामने, जय जयकार मची है। चारों तरफ से छुट्टी हो गई, एक ही राह बची है.. ३. वीतराग निग्रंथ बनो, शुद्धातम ध्यान लगाओ। रत्नत्रय को धारण करके, मोक्ष परम पद पाओ. ४. ज्ञानानन्द स्वयं ही हो गये, सहजानन्द भी आ गये। ब्रह्मानन्द तो साथ है अपने, निजानन्द भी छा गये..... धर्म कर्म वरदान बने हैं, सब शुभयोग मिला है। दृढता धरकर दांव लगाओ, यह सौभाग्य खिला है..... राग के बाग में आग लगाओ, सब ही बन्धन तोड़ो। ज्ञानानन्द चलो जल्दी से, समय रह गयो थोड़ो..... भजन-३० रहो रहो रे निराकुल निद,अब काये डर रहे हो। १. जोन समय पर जो होने है, सब क्रमबद्ध और निश्चित । पर से अपनो का मतलब है, तुम क्यों रहते चिंतित...रहो.. २. अपनो स्मरण ध्यान रखो नित, रहो आनन्द परमानन्द।। किसी का तुम कुछ कर नहीं सकते, छोड़ो सब ये द्वंद फंद...रहो..... ३. जिसका जैसा जब होना है, होगा सब वैसा ही। तुम तो आतम परमातम हो, करो न कुछ कैसा ही...रहो... ज्ञानानन्द स्वभावी हो तुम, ज्ञान चेतना वाले। जागो देखो निज स्वभाव को, क्यों हो रहे मतवाले...रहो..... अरस अरूपी निराकार हो, शुद्ध बुद्ध अविनाशी। छोड़ो अब यह मोह राग को, हो शिवपुर के वासी...रहो..... २७६
SR No.009722
Book TitleShravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherGokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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