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________________ आध्यात्मिक भजन ) श्री श्रावकाचार जी भजन-१५ ममल स्वभावी सिद्ध स्वरूपी,शुद्धातम अभिराम हो। सहज सच्चिदानंद मयी हो, सदा पूर्ण निष्काम हो ।। १. पर से अब क्या लेना देना, पर से अब क्या काम हो। पर के पीछे भटक रहे हो, इससे ही बदनाम हो। २. तुम हो अरस अरूपी चेतन , ज्ञानानंद सुख धाम हो। जो होता सब क्रमबद्ध निश्चित , क्यों उलझे बेकाम हो। ३. अपने ब्रह्म स्वरूप को देखो, स्वसत्ता ध्रुव धाम हो। सहजानंद स्वभाव तुम्हारा,कहाँ लगा रहे दाम हो । ४. निर्भय होकर दृढता धारो, करो निज में ही मुकाम हो। अशुद्ध पर्याय का पीछा छोड़ो,चलो अपने ध्रुवधाम हो। भजन-१६ दर्शन ज्ञान चेतना वाला, अपने को पहिचान रे। देह देवालय में बैठा है,तू ही तो भगवान रे ।। निज सत्ता शक्ति को देखो,अनंत चतुष्टय धारी हो। रत्नत्रय से हो आभूषित, सिद्ध परम पद वासी हो। अपनी भूल से भटक रहा है, बना हुआ अनजानरे.... अपनी महिमा नहीं आ रही, संसारी बन मरता है। पर की तरफ ही देख रहा है, राग द्वेष ही करता है। अब तो देख ले निज सत्ता को,सद्गुरु कहना मानरे..... देख लेसबशुभ योग मिला है, शुभसंयोग यह पाया है। वीतराग जिनधर्म मिला है, तारण पंथ में आया है। धर्म की महिमा बरस रही है, कर ले दृढ श्रद्धान रे. ४. चारों तरफ से मुक्त हो गया, कोई रहा न बंधन है। दृढ़ता धर पुरुषार्थ जगा ले, महावीर जग वंदन है।। ज्ञानानंद स्वभावी है तू, जगा स्वयं बहुमान रे..... भजन-१७ देव स्वरूपी निज आतम है, कहते सद्गुरु तार हैं। सम्यकदर्शन इससे होता, करो इसे स्वीकार है। १. देव धर्म गुरु और कोई नहीं, निज आतम की सत्ता है। भूल स्वयं को फँसे अनादि, कर्मों की बलवत्ता है। २. देव धर्म गुरु पंच परमेष्ठी, यह सब हैं व्यवहार से। साक्षी निज स्वरूप को जानो, कहते हैं उपकार से।। ३. सिद्ध स्वरूपी शुद्धातम खुद, ध्रुव तत्व अभिराम हो। समल पर्याय सब कर्मोदायिक, तुम तो पूर्ण निष्काम हो। ४. भेदज्ञान कर दृढ़ता धारो, पर पर्याय को मत देखो। शरीरादि का पीछा छोड़ो, किसी को अपना मत लेखो। ५. ज्ञानानंद स्वभावी हो तुम, निज सत्ता स्वीकार करो। ध्रुवधाम की धूम मचाओ, किसी से अब बिल्कुल नडरो॥ भजन-१८ मौका मिला है महानरे, अपने में खो जा चेतनवा॥ १. पर पर्याय में अब मत भटके, राग उदय में अब मत अटके। तू तो है सिद्ध समान रे.....अपने में खो जा..... २. क्रमबद्ध पर्याय सब निश्चित, टाले टले न कुछ भी किंचित् । करले तू दृढ श्रद्धान रे.....अपने में खो जा..... ३. ध्रुव तत्व तू ममल स्वभावी, शुद्ध बुद्ध है शिवपुर वासी। हो जावे केवलज्ञान रे.....अपने में खो जा..... ४. सिद्ध स्वरूपी शुद्धातम है , परम ब्रह्म तू परमातम है। धर ले निजातम का ध्यान रे.....अपने में खो जा..... ५. ज्ञानानन्द परमानंद मयी है, अलख निरंजन अरूपी सही है। पायेगा पद निर्वाण रे.....अपने में खो जा..... GAON
SR No.009722
Book TitleShravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherGokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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