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________________ श्री आवकाचार जी आध्यात्मिक भजन मंगलाचरण शुद्धात्म ममल ममलं, ध्रुव तत्व स्वयं रमणं । हे न्यानी लीन रहो ॥ १. शुद्ध बुद्ध स्वयं सिद्धं, जिन ब्रह्म स्वयं शुद्धं ... हे .... २. परमात्म पदं पदमं, षट् कमल जिनं कमलं .... हे ... ३. रत्नत्रय मयं शुद्धं, पंच ज्ञान मयं बुद्धं... हे .... ४. उव उवन उवन उवनं, जिन जिनय जिनय जिनयं... . हे ... ५. ज्ञानानंद मयं नन्दं, त्र्यलोक्य पूज्य वन्दम् ... हे .... ६. है मुक्त सदा मुक्तं, तारण तरण जिनं उक्तं ... हे.... ७. ब्रह्मानंद स्वयं लषनं, सहजानंद स्वयं भवनं ... हे... भजन - १ हे भव्यो, श्रावक के व्रत धारो ।। १. ग्यारह प्रतिमा पाँच अणुव्रत, हृदय से स्वीकारो । हिंसा झूठ कुशील परिग्रह, चोरी नरक द्वारो... हे.... २. पंचेन्द्रिय के विषयों में फँस, जीवन होत दुधारो । हाथी मछली भ्रमर पतंगा, हिरण जात है मारो... . हे... ३. चार कषाय महा दुःखदाई, विकथा व्यसन निवारो । जन्म मरण से बचना चाहो, मोह राग को मारो. . हे... अपने कल्याण के इच्छुक गृहस्थ को अपनी तथा देश, काल, स्थान और सहायकों की अच्छी तरह समीक्षा करके व्रत ग्रहण करना चाहिये और ग्रहण किये हुए व्रत को प्रयत्न पूर्वक पालना चाहिये । प्रमाद से या मद में आकर यदि व्रत में दोष लग जाये तो तत्काल प्रायश्चित लेकर पुन: व्रत ग्रहण करना चाहिये । SYARAT GAA AAT GEAR AT YEAR. २६९ १. २. ३. ४. १. ३. आध्यात्मिक भजन भजन - २ हे भव्यो, संयम को लो धार । बिन संयम के दुर्गति होवे, जीवन है बेकार ॥ पंच स्थावर छटवें त्रस की, हिंसा नरक का द्वार । . हे... ... । पंचेन्द्रिय के विषय भोग ही, देते दुःख अपार मन ही भव संसार घुमाता, करता बंटाढार । विषय कषाय में फँसा जीव ही, करता हा हा कार... हे... समय का संयम, इन्द्रिय संयम, अर्थ संयम लो धार भाव संयम की करो साधना, होवे बेड़ा पार भेद ज्ञान सत्श्रद्धा कर लो, करो सत्य स्वीकार । ज्ञानानंद क्या देख रहे हो, करो आत्म उद्धार संयम तप को धारण कर लो, क्यों हो रहे लाचार । ब्रह्मानंद उठो अब जल्दी, मचेगी जय जयकार .... हे..... हे..... . हे... ... भजन - ३ साधु संत महान, जगत में । जिनकी सत्संगति से जीवों, का होता कल्याण ॥ पर उपकारी धर्म के धारी, धरें आत्म का ध्यान । वीतराग करुणा के सागर, तारण तरण सुजान. आप तरें औरों को तारें, करें भेद विज्ञान । ऐसे संतों के चरणों में, अर्पित तन मन प्राण ..... ब्रह्मानंद मगन नित रहते करते अमृत पान । सभी जीव मुक्ति को पावे देते शुभ वरदान. " ***** *****
SR No.009722
Book TitleShravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherGokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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