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________________ सही जैन की ठीक, तिन्हों को और कछू नहिं भावै । आगम और अध्यातम वानी, सुनै सुनावै गावै ॥ विकथा चार विचार जगत में, तिनकों नाहिं सुहावै । सूरत सो सज्जन मो भावै, जो शिवपंथ बतावै ॥ ६५ ॥ षषा षटक निवारि कै, षिमा भाव चितलाय । खुलै कपाट अभ्यास तें, खिरें करम दुखदाय ॥ ६६ ॥ खरै करम दुखदाय जाय वह षिमा भाव चित ल्यावै । होय अभ्यास तास भविजन कॉ, ज्ञानी ज्ञान जगावै ॥ सदा मगन है अपने मन में, रीझ आप सुख पावै । सूरत सोई भिन्न सबन तैं, सो आतम हित लावै ॥ ६७ ॥ शशा सो स्याना सदा, सुगुरु सीख लख लेह । सदा रहै संतोष में, सो सांचा जग तेह ॥ ६८ ॥ सो सांचा जग तेह, गेह में जो संतोष विचारे । जोग जाति सब ही संसारी, तिनको नहीं निहारे ॥ संकल्प विकल्प जग के जितने, तिन दुश्मन को टारे । सूरत सो साधु जग जीते, शिवपुर वेग सिधार ।। ६९ ।। हाहा हूहू करि रह्यो, है पर वशि दुख पाय । क्यों न आप वश हू जिये, होय परम सुखदाय ॥ ७० ॥ होय परम सुखदाय, पाय पद चिद्रूपी अविनाशी । केवलज्ञान दर्श जहं केवल, सिद्धपुरी सुखराशी ॥ आठों करम खिपावै तिनके, आठों गुन परकासी । सूरत सिद्ध महा सुख पावै, काल अनंता पासी ॥ ७१ ॥ लला लेखे परमपद, लखि लखि गये निर्वान | लोक शिखर ऊपर चढ़े, लियो सिद्ध शिवथान ॥ ७२ ॥ १७० लियो सिद्ध शिवथान, आन लखि सोइ सिद्ध कहाये । दर्शन ज्ञान चरन गुन तीनों, तिन शिवपुर पहुंचाये ॥ जो जो दरसै सो सो भासै, आप अचल ठहराये । सूरत सिद्ध कहे ऐसे गुरु जिन पुरान में गाये ॥ ७३ ॥ लला लक्ष्मी जो वरें, गुन लक्षण को वेव । लखै सुलक्षन परखि कै, तजे कुलक्षण टेव ॥ ७४ ॥ तजै कुलक्षन टेव, भेद लखि सिद्ध रूप को ध्यावै । अरहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय, साधुन सीस नवावै ॥ जिन मत धर्म देव गुरु च्यारों, यह दृढ़ता मन लावै । सूरत यह परतीत घरै मन, सो सम्यक्पद पावे ॥ ७५ ॥ सम्यक्पद को जो लहै, करै बैन गुरु प्रीत । देव धरम गुरु ज्ञान को परख गहै निज रीत ॥ ७६ ॥ "" बारहखड़ी हित सों कही नहिं गुनियन की रीस । दोहा तो चालीस हैं, छंद कहे छत्तीस ॥ ७७ ॥ अध्यात्म बारहखड़ी पं. दौलतमल जी द्वारा विरचित पंडित दौलतराम जी का समय विक्रम संवत् १७४९ से १८२९ तक रहा, उनकी अनेक रचनाओं में अध्यात्म बारहखड़ी भी सम्मिलित है। पंडित दौलतराम जी कासलीवाल वासवा जयपुर के निवासी थे, उनके द्वारा रचित अध्यात्म बारहखड़ी में प्रत्येक अक्षर के संस्कृत श्लोक के साथ-साथ हिंदी में विभिन्न छंदों के द्वारा आध्यात्मिक रहस्य स्पष्ट किया है, इस पूरी कृति को यहां देना संभव नहीं हो सका अत: अध्यात्म बारहखड़ी के मात्र संस्कृत श्लोक यहां दिये जा रहे हैं। ॐकारं परमं देवं ज्ञानानंद मयं विभुं । परात्परतरं शुद्धं बुद्धं वंदे स्वरूपिणं ॥ १७१
SR No.009720
Book TitleOm Namo Siddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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