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________________ शी-एह-चांग का दूसरा नाम 'सिद्धिरस्तु' या 'सिद्ध वस्तु है। ईत्सिंग के सि-तन-चांग और यूनचांग के 'शी-एह-चांग' दोनों ग्रंथ एक ही अर्थ बारह खड़ी के घोतक हैं। चीनी लेखक के द्वारा लिखी गई यह 'सिद्धिरस्तु' रचना अब चीन में भले ही न मिलती हो किन्तु जापान में अब तक इसका प्रचार है। इन दोनों ग्रंथों में 'ॐ नम: सिद्धम्' का उल्लेख किया गया है।३२ विशेष बात यह है बारहखड़ी से संबंधित दो जापानी ग्रंथ पहला 'सिद्ध । पिटक 'या' सिद्ध कोश' है इसकी रचना सन् ८८० में हुई थी तथा दूसरा 'सिद्ध । के अठारह प्रकरण'इसका रचना काल सन् १५५६ है, इन ग्रंथों के प्रारंभ में 'ॐ नम: सिद्धम्' लिखकर १६ स्वर और ३५ व्यंजन बताये गये हैं।" प्रसिद्ध जार्ज व्हूलर का कथन है कि बारहखड़ी का प्रारंभ'ॐ नम: सिद्धम् । से होता था और इस मंगल पाठ के कारण ही बारहखड़ी को सिद्धाक्षर समाम्नाय या सिद्ध मातृका भी कहते हैं। इसकी प्राचीनता का प्रमाण हई-लिन (७८८-८१० ईस्वी) से भी मिलता है। उसने 'ॐ नमः सिद्धम्' इस मंगल पाठ को १२ में पहली फाड़ या चक्र (युवाङच्चाङ के १२ चाङ) कहा है, उस काल में हिन्दू लड़के इसी से विद्यारम्भ करते थे।३४ विदेशी पर्यटक मेगस्थनीज और चीनी यात्री हवेनसांग ने भारतीय वर्णमाला के संबंध में 'सिद्ध मातृका' का उल्लेख किया है। चीन का प्रसिद्ध विश्वकोश 'फांवान-शू-लिन' दुनिया भर में प्रसिद्ध है। उसमें भी ब्राह्मी लिपि, बारहखड़ी और 'ॐ नमः सिद्धम्' की बात लिखी मिलती है।३५ बुन्देलखंड में पांच पाटियों के अध्ययन-अध्यापन का नियम था। पांच वर्ष का बालक इन्हें ओ ना मा सीधम (ॐ नम: सिद्धम्) से सीखना प्रारंभ करता था। पांच पाटियां कातंत्र की पंच संधियों का रूपान्तरण है और कुछ नहीं। ३६ 'ॐ नम: सिद्धम्' से प्रारंभ होने वाला यह पाटी का प्रसंग यहाँ अत्यन्त महत्वपूर्ण है। कातंत्र व्याकरण की पंच संधियों के रूपान्तरण स्वरूप उक्त स्थान पर पांच पाटी प्राप्त नहीं हैं, किन्तु एक अन्य स्थान पर इन्हें चार पाटी के रूप में प्रस्तुत किया है, इस संबंध में "ओ ना मा सी धम् बाप पढ़े न हम" नामक लेख में महेश कुमार मिश्र के विचार पठनीय हैं "कातंत्र व्याकरण, पाणिनीय सम्प्रदाय से भिन्न है और शर्व वर्मा की रचना कहा जाता है । कातंत्र व्याकरण के प्रथम अध्याय के पहले चारों ‘पाद' " इन चारों पाटियों से काफी कुछ मेल खाते हैं।"३" "पाटी" के साथ-साथ पाटी पढ़ना,चारोंपाटियां,लेखे,चरनाइके, ओलम आदि ऐसे शब्द हैं जो सहज ही अपनी ओर आकृष्ट करते हुए, यह सब समझने की जिज्ञासा को जाग्रत करते हैं। ओ ना मा सी धम् अर्थात् ॐ नम: सिद्धम् से प्रारंभ होने वाली यह शिक्षा भारतीय जन मानस के जीवन को व्यवस्थित और धर्ममय बनाने का आधार रही है। लोक व्यवहार में भी पाटी के साथ लेखे, चरनाइके, ओलम आदि को जानने वाला बुद्धिमान के साथ-साथ शिष्टाचार के आचरण को पालने वाला सुसंस्कृत सभ्य व्यक्ति माना जाता था । उत्तरी भारत के हिन्दी भाषी क्षेत्रों के वे वृद्धजन जिनकी प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा कभी ग्रामीण अंचलों में हुई थी, उन्हें यह वाक्य कहते हुए सुना जाता है - -ओ ना मा सीधम : बाप बढ़े न हम। - हां मैं सब समझ गया । तुम जरूर किसी से 'पाटी पढ़कर' आये हो। - उसकी क्या बात करते हो? वह "चारों पाटी" पढ़ा है। - आज की पढ़ाई किस काम की? विद्यार्थी सही हिसाब तक तो कर नहीं सकते। हमारे जमाने के लोग, जिन्होंने पाटियां' और 'लेखे' पढ़े हैं, आज के बी. ए., एम. ए. पास के भी कान काटते हैं। - आजकल के लड़कों में जरा भी शिष्टाचार नहीं, जब उन्होंने 'चरनाइके' ही नहीं पढ़े हैं, तो उन्हें शिष्टाचार का ज्ञान ही कहां से होगा? - यह लड़का तो 'ओलम' से ही ऐसा है। उपरोक्त बातों से यह उत्सुकता जाग्रत होती है कि आखिर १. पाटी २.पाटी पढ़ना ३. चारों पाटियां ४. लेखे ५. चरनाइके और ६. ओलम इत्यादि क्या है ? और 'ओ ना मा सी धम्' क्या है जिसका संक्षिप्त रूप 'ओ ना मा सी' हिन्दी के शब्द कोशों में भी मिल जाता है। "ओ ना मा सी धम्"शब्द संस्कृत भाषा के प्राचीनतम वैयाकरण महर्षि शाकटायन के व्याकरण का प्रथम सूत्र- 'ओऽम् नमः सिद्धम' है। पुराने जमाने में बालक को विद्यारंभ कराते समय सबसे पहले इसी सूत्र की ३७. ओ ना मा सीधम्: बाप पढ़े न हम, महेश कुमार मिश्र 'मधुकर' दतिया द्वारा लिखित लेख, कादम्बिनी दिसंबर १९८३ पृष्ठ-१११ ३२. नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष ५१ अंक १, पृ.३२-३५ ३३. वही, पृष्ठ ३६. ३४. भारतीय पुरालिपि शास्त्र, जार्ज व्हूलर, मोतीलाल बनारसी दास दिल्ली सन् १९६६ पृष्ठ६ ३५. विश्वकोश, फांवान-शू-लिन, तथा ह्वेनसांग का यात्रा विवरण ३६. काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष ५१ अंक २ पृष्ठ ६८-६९ ५४
SR No.009720
Book TitleOm Namo Siddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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