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________________ कलकत्ता में एक सेठ रहते थे, स्व. बाबू छोटेलाल जैन नाम था उनका, उन्होंने अपना पूरा जीवन जैन कला संस्कृति और समाज सेवा में लगाया। उन्होंने एक स्थान पर लिखा है कि भारत के उत्तर से दक्षिण तक और पूर्व से पश्चिम तक जैन शिक्षा संस्थानों का जाल बिछा हुआ था, उनमें मात्र जैन ही नहीं, सभी जातियों के छात्र पढ़ते थे, उन सबकी वर्णमाला का प्रारंभ 'ॐ नमः सिद्धम्' से ही होता था। २२ 'भारत में ब्रिटिश राज्य' के रचयिता पं. श्री सुन्दरलाल जी महाराज ने एक भाषण में कहा था कि औरंगजेब के समय में उत्तर से दक्षिण तक और पूर्व से पश्चिम तक जैन पाठशालाओं ( प्रायमरी विद्यालयों) का जाल बिछा हुआ था। उनमें व्यापारिक और भाषा संबंधी शिक्षा अधिक दी जाती थी। एक बार औरंगजेब ने भारत के प्रतिष्ठित जैन बन्धुओं को बुलाकर कहा कि भाई, आप लोग हिन्दुस्तान की शिक्षा में इतना सहयोग कर रहे हैं, कुछ सहायता हमसे भी ले लो, किंतु उन्होंने विनम्रतापूर्वक इंकार कर दिया। इन पाठशालाओं में सभी कौमो और वर्गों के छात्रों को निर्बाध प्रवेश मिलता था, उन्हें वर्णमाला के प्रारंभ में 'ॐ नमः सिद्धम्' का मंगल पाठ पढ़ना होता था। किसी को कोई आपत्ति नहीं थी, सब कुछ निरापद चलता था ।२३ दक्षिण में हिन्दू छात्रों को बारहखड़ी के प्रारंभ में 'श्री गणेशाय नमः' के स्थान पर 'ॐ नमः सिद्धम्' पढ़ाया जाता था। राष्ट्रकूट समय से लेकर अभी तक यह सतत् लगातार चलता रहा। इस पर प्राकृत अपभ्रंश के प्रकाण्ड विद्वान वी.सी. वैद्य का कथन उल्लेखनीय है- 'मास एजूकेशन' जैनों के द्वारा नियंत्रित थी । बारहखड़ी के प्रारंभ में उनका ॐ नमः सिद्धम् सर्वमान्य और सार्वभौम था, जैन की गिरती दशा में भी वह सर्व जन में प्रचलित रहा। इससे जैन शिक्षा का महत्व स्वतः ही अंकित हो जाता है। २४ मध्यप्रदेश के सिवनी नगर निवासी स्व. पं. श्री सुमेरचंद दिवाकर प्रकाण्ड विद्वत्ता के धनी थे, उन्होंने 'जैन शासन' नामक कृति में लिखा है उत्कल उड़ीसा प्रान्त के पुरी जिले के अंतर्गत उदयगिरि - खण्डगिरि के २१. 'प्राचीन और मध्यकालीन भारत में जैन शिक्षा' डॉ. ज्योति प्रसाद जैन द्वारा लिखित निबंध, वीर विशेषांक वर्ष ३६ अंक १८-१९, पृष्ठ १९ २२. वही, पृष्ठ १३० २३. ओनामा सीधम् - डा. प्रेमसागर जैन, प्रास्ताविकम् पृ. १, कुन्दकुन्द भारती नई दिल्ली प्रकाशन १९८९ २४. राष्ट्रकूटाज एण्ड देयर टाइम्स, पृष्ठ- ३०९, ३१० ५० जैन मंदिर का हाथी गुफा वाला शिलालेख जैन धर्म की प्राचीनता की दृष्टि से असाधारण है। उस लेख में 'नमो अरहंतानं, नमो सबसिद्धानं ' आदि वाक्य उसे जैन प्रमाणित करते हैं। यह ज्ञातव्य है कि शिलालेख में आगत 'नमो सब सिद्धानं ' वाक्य आज भी उड़ीसा प्रान्त में वर्णमाला शिक्षण प्रारंभ कराते समय 'सिद्धिरस्तु' के रूप में पढ़ा जाता है। तेलगू भाषा में 'ॐ नमः शिवाय' 'सिद्धम् नमः' वाक्य इस अवसर पर पढ़ा जाता है। महाराष्ट्र प्रांत में भी ॐ नमः सिद्धेभ्यः पढ़ा जाता है। हिन्दी पाठशालाओं में जो पहले 'ओ ना मा सी धम्' पढ़ाया जाता था, वह 'ॐ नमः सिद्धम्' का ही परिवर्तित रूप है। इससे भिन्न-भिन्न प्रांतीय भाषाओं पर अत्यंत प्राचीन कालीन जैन प्रभाव का सद्भाव सूचित होता है। २५ इस संदर्भ में महापण्डित राहुल सांस्कृत्यायन का यह कथन महत्वपूर्ण है "ओ ना मा सी धम्" वस्तुतः 'ॐ नमः सिद्धम्' का विकृत उच्चारण है। पीछे कहीं-कहीं इसकी जगह ही कई स्थानों पर रामागति-देहूमति का प्रयोग होने लगा। कहीं-कहीं 'श्री गणेशाय नमः' से भी अक्षरारम्भ कराया जाता रहा। सिद्धम् में एक वचन का प्रयोग है, वह चौरासी सिद्धों के लिये नहीं है अन्यथा बहुवचन का प्रयोग होता। सत्य यह है कि 'ॐ नमः सिद्धम्' ब्राह्मणों का प्रयोग नहीं है । ब्राह्मणों के त्रिदेवों को सिद्ध नहीं कहा जाता। बौद्ध और जैन ही अपने सम्प्रदाय प्रवर्तक को सिद्ध कहते हैं, इसलिये ओ ना मा सी धम् का इतना व्यापक प्रयोग श्रमणधर्म के प्रभाव की व्यापकता को बताता है। जिन सिद्धों और साहित्य के बारे में हम कहते आ रहे है, उनका आविर्भाव सिद्ध शब्द के प्रयोग के बाद हुआ । २६ 'ॐ नमः सिद्धम्' का मूल था 'कातंत्र व्याकरण' । ऐसा माना जाता है कि श्री शर्ववर्मा इसके रचियता नहीं, अपितु संकलयिता थे। यह ग्रन्थ समय-समय पर 'कलाप' अर्थात् मयूर पिच्छि धारी साधुओं के द्वारा रचा जाता रहा, इसी कारण इसका नाम कलाप पड़ा इसका पहला सूत्र है "सिद्धो वर्ण समाम्नाय : " । यहाँ से ही 'ॐ नमः सिद्धम्' नमस्कारात्मक मंगल वचन प्रारम्भ हुआ। 'कातंत्र व्याकरण विमर्श' की प्रस्तावना में डा. भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी ने लिखा है, 'किं चकलापापदपयांस्य कातंत्र व्याकरण स्यादावन्ते च जैन परम्परायाम् 'ॐ नमः सिद्धम्' इति नमस्कारात्मकं मंगलं बहुषु हस्तलेखेषु २५. जैन शासन, पं सुमेरचंद दिवाकर, पृष्ठ- २९४ २६. बौद्ध सिद्ध साहित्य, महापण्डित राहुल सांस्कृत्यायन, सम्मेलन पत्रिका, भाग - ५१, शक संवत् १८८७, पृष्ठ- ४ ५१
SR No.009720
Book TitleOm Namo Siddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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