SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक ज्ञायक सिद्ध स्वरूप है। आचार्य योगीन्दुदेव इसे और भी स्पष्ट करते हुए कहते हैंए.जु अप्पा सो परमप्पा, कम्म विसेसे जायउ जप्पा। जामई जाणइ अप्य अप्पा, तामई सो जि देउ परमप्पा ॥ ॥अध्याय २-गाथा १७४॥ यह प्रत्यक्षीभूत स्वसंवेदन ज्ञान से प्रत्यक्ष जो आत्मा वही शुद्ध निश्चय से अनन्त चतुष्टय स्वरूप, क्षुधादि अठारह दोष रहित निर्दोष परमात्मा है । वह व्यवहार नय से अनादि कर्म बंध के विशेष से पराधीन हुआ दूसरे का जाप करता है; परंतु जिस समय वीतराग निर्विकल्प स्वसंवेदन ज्ञान पूर्वक अपने को जानता है उस समय यह आत्मा ही परमात्मा देव है। निज शुद्धात्मा की भावना से उत्पन्न हुआ जो परम आनंद उसके। अनुभव में क्रीड़ा करने से देव कहा जाता है, यही आराधने योग्य है जो आत्म देव शुद्ध निश्चय नय से परमात्मा के समान है। ऐसा परमात्म देव शक्ति रूप से देह में है,जो देह में न होवे तो केवलज्ञान के समय कैसे प्रगट होवे। वस्तु स्वभाव की दृष्टि से देखें तो स्वभाव त्रिकाल शुद्ध है, द्रव्य रूप, परमात्म स्वरूप ही है। इसकी वर्तमान अवस्था पर द्रव्य के निमित्त से अशुद्ध हुई। है, परंतु यह गौण है। आत्मा में दो प्रकार के भाव हैं- एक त्रिकाली स्वभाव और एक वर्तमान पर्याय भाव । यहां त्रिकाली स्वभाव जो सत् स्वरूप शाश्वत है वह कभी अशुद्ध नहीं हुआ, भेद रूप भी नहीं हुआ, निरंतर अपने स्वभाव से सत् चित् आनंद स्वरूप शुद्ध ही रहा है इसलिए पर्याय को गौण करके अभेद स्वभाव को ही दृष्टि में लेना यही इष्ट प्रयोजनीय है। कहा भी है जो परमप्या णाणमउ, सोहउँ देउ अणंतु। जो हउँसो परमप्यु परु, एहउ जाणि णिभंतु ॥ ॥ परमात्मप्रकाश-२/१७५॥ जो परमात्मा ज्ञान स्वरूप है, वह मैं ही हूं, जो कि अविनाशी देव स्वरूप हूं,जो मैं हूं वही उत्कृष्ट परमात्मा है इस प्रकार नि:संदेह भावना कर। द्रव्य दृष्टि शुद्ध है, अभेद है, निश्चय है, भूतार्थ है, सत्यार्थ है, परमार्थ है। द्रव्य का स्वभाव अभेद है,उस पर दृष्टि जाने पर दृष्टि भी अभेद है। त्रिकाली। स्वभाव की दृष्टि से देखें तो द्रव्य तो निश्चय सत् है और उसके आश्रय से प्रगट हुई दृष्टि भी निश्चय है। आत्मा वस्तु त्रिकाल है यह भूतार्थ है, अनुभव के काल में स्वभाव और दृष्टि में कुछ भी भेद नहीं है। जैसा परमात्मा है वैसा ही मैं हूं। ॐ नम: सिद्धम् की इस अनुभूति को श्री गुरु तारण स्वामी ने श्री छद्मस्थवाणी जी ग्रंथ में व्यक्त करते हुए कहा है कि सो सो सोह, तूं सो तूं सो तूं सो ॥७/१॥ हों सो,हों सो,तूंसो, सोहं सोहं हंसो॥ ७/२॥ जै, जै,जै,तूंजे सभाइ सुभाइ सुभाइ मुक्ति विलसाइ॥७/४॥ इन सूत्रों का भाव यह है कि जो परमात्मा परम प्रसिद्ध सर्वोत्कृष्ट केवलज्ञानादि रूप लक्ष्मी का निवास है, ज्ञानमयी है, वैसा ही मैं हूं । यद्यपि व्यवहार नय से मैं कर्मों से बंधा हुआ हूं तथापि निश्चय दृष्टि से मेरे बंध भी नहीं है और मोक्ष भी नहीं है। जैसा भगवान का स्वरूप है, वैसा ही मेरा स्वरूप है, जो आत्मदेव महामुनियों के द्वारा परम आराधने योग्य है और अनंत सुख आदि गुणों का निवास है। इससे यह निश्चय हुआ कि जैसा परमात्मा यह आत्मा, और जैसा यह आत्मा वैसा ही परमात्मा है। जो परमात्मा है, वह मैं हूं,और जो मैं हूं वही परमात्मा है। 'सोहं' शब्द में 'अहं' यह शब्द देह में स्थित आत्मा का वाचक है और 'स:' शब्द मुक्ति को प्राप्त परमात्मा का वाचक है। इन सूत्रों के सार स्वरूप मुख्य बात यह ध्यान में रखने की है- जो परमात्मा है वह मैं हूं और जो मैं हूं वही परमात्मा है। परमात्मा अपने स्वभाव से मुक्ति में विलस रहे हैं और यह आत्मा भी अपने स्वभाव से मुक्ति में विलस रहा है। सद्गुरु ने इसी की जय जयकार करते हुए स्वभाव की महिमा जगाई है। उनके अंतर में जय जयकार मच रही है कि प्रभु तुम्हारी जय हो, जय हो, शुद्धात्म देव की जय हो, जैसे भगवन् आप हो वैसा ही मैं हूं यह अंतर में अनुभव करते हुए स्वभाव की जय जयकार कर अपना आनंद लिया है; और ॐ नम: सिद्धम् मंत्र के द्वारा हम सभी भव्यात्माओं को भी स्वभाव की साधना आराधना और अनुभव करने की प्रेरणा दी है, क्योंकि यह सिद्ध स्वरूपी शुद्धात्मा शुद्ध परम पवित्र है, बुद्ध अर्थात् ज्ञान स्वरूप है, चैतन्य घन अर्थात् असंख्य प्रदेशी है। आत्मा स्वयं ही परमानंद परम ज्योति स्वरूप है अर्थात् स्वयं सिद्ध वस्तु है, इसको किसी ने न उत्पन्न किया है और न ही कोई इसको नाश करने वाला है। वह परम सुखधाम अर्थात् आनंद,परम आनंद, अतीन्द्रिय आनंद का धाम है। ऐसा आत्मा अभेद एक रूप परम सत्य यथार्थ वस्तु तत्त्व है। इसका "कर विचार तो पाम "अर्थात् ज्ञान की पर्याय में स्वसंवेदन द्वारा ऐसे अपने महिमामय सिद्ध स्वभाव को लक्ष्य में लें तो उसकी प्राप्ति होवे। अपने अनंत गुणों में व्यापक, अभेद,अखंड जो ध्रुव तत्त्व इसकी दृष्टि करना ३६
SR No.009720
Book TitleOm Namo Siddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy