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________________ ९८ आशा नाम नदी.....श्लोकार्थआशा नाम की नदी है जिसमें मनोरथ अर्थात् इच्छा रूपी जल भरा हुआ है, उसमें तृष्णा की तरंगों के समूह उठ रहे हैं। इस नदी में राग के मगर और वितर्क के पक्षी धैर्य रूप आत्म शक्ति को नष्ट करने वाले हैं। इसमें मोह के छोटे-बड़े गहरे भंवर उठ रहे हैं, चिन्ताओं के ऊंचे-ऊंचे तट हैं। ऐसी आशारूपी नदी को जिन योगीश्वरों ने विशुद्ध भाव पूर्वक पार कर लिया वे योगीश्वर धन्य हैं। मंदिर विधि-धर्मोपदेश किसने लिखा? आर्यिका ज्ञान श्री, कंठ कमल मुखारविंद वाणी श्री भैया रुइया रमन जी कहें। पूज्य आर्यिका कमल श्री माता जी के मार्गदर्शन में आर्यिका ज्ञान श्री और श्री रुइया रमन जी ने सबसे पहले यह मंदिर विधि धर्मोपदेश लिखा। आगे चलकर पूर्वज विद्वानों के द्वारा आवश्यकतानुसार संशोधन किए गए तथा पूर्व समय में पं.बनारसीदासजी, पं.भूधरदास जी के कुछ छंद मंदिर विधि में जोड़े गए हैं, जो अभी भी चल रहे हैं। आठ पहर की साठ घड़ीएक पहर में ३ घंटा और ८ पहर में २४ घंटा होते हैं। १घंटे में ६० मिनिट होते हैं। २४ घंटे के मिनिट बनाने के लिये २४ में ६० को गुणित करें तो १४४० मिनिट लब्ध आते हैं। २४ मिनिट की एक घड़ी होती है, अत: १४४० में १ घड़ी अर्थात् २४ मिनिट का भाग देने पर ६० लब्ध आते हैं, इस प्रकार ८ पहर में ६० घड़ी होती हैं। अब कहा दर्शावत......का अर्थअब क्या दर्शाते हैं आचार्य ? शास्त्र सूत्र सिद्धांत का नाम अर्थात् स्वरूप और अर्थ। शास्त्र का स्वरूप क्या है ? जिसमें त्रिक स्वभाव अर्थात् तीन का समूह, जैसे सच्चे देव,गुरू,धर्म की महिमा । आचार, विचार, क्रिया । कलन (ध्यान), चरन (चारित्र), रमन (स्वरूप में लीनता)। उवन दृढ़ (सम्यक्श्रद्धान में दृढ़ता), ज्ञान दृढ़ (सम्यग्ज्ञान में दृढ़ता), मुक्ति दृढ़ (सम्यक्चारित्र में दृढ़ता) जिसमें एक त्रिक या समुच्चय वर्णन हो उसे शास्त्र कहते हैं। व्यवहारे परमेष्ठी...... का अर्थ - व्यवहार में पंच परमेष्ठी शरण भूत हैं, निश्चय से आप ही आपको अर्थात् निज शुद्धात्मा ही स्वयं को शरणभूत है। सांचो देव सोई......छंद का अर्थसच्चे देव वही हैं, जिनमें जन्म जरा आदि लेशमात्र भी कोई दोष नहीं हैं। सच्चे गुरू वे हैं जिनके हृदय में सांसारिक कोई भी चाहना नहीं है। सच्चा धर्म वह है जहां करुणा दया की प्रधानता कही गई है। सच्चे शास्त्र वे हैं जिनमें प्रारंभ से अंत तक निर्विरोध एक रूप सिद्धांत का कथन है। इस प्रकार संसार में यह चार ही रत्न हैं। हे मित्र ! अपने ज्ञान में इन्हें परखो और सच्चे देव, गुरू, शास्त्र, धर्म की श्रद्धा करो, मिथ्या देव, गुरू, धर्म आदि को छोड़ दो इसी में मनुष्य जन्म का लाभ है और यदि सच्चे-झूठे का मनुष्य को विवेक नहीं है तो वह पशु के समान है; इसलिये सत्य को ग्रहण करना और असत् मिथ्या को छोड़ना यही उचित बात है और यही पारणी अर्थात् ग्रहण करने, आचरण में लाने योग्य सलाह है। सूत्र नाम....... का अर्थसूत्र नाम किसको कहते हैं अर्थात् सूत्र का स्वरूप क्या है ? विस्तार की बात को जिसके द्वारा संक्षेप में कह दिया जाय उसे सूत्र कहते हैं। जैसे - तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्।
SR No.009719
Book TitleMandir Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size1 MB
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