SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५९ अनन्तवीर्य सूरिप्रभ सोय, विशालकीर्ति जग कीरत होय । वजधर स्वामी चन्द्रधर नेम, चन्द्रबाहु कहिये जिन बैन । भुजंगम ईश्वर जग के ईश, नेमीश्वर जू की विनय करीश । वीर्यसेन वीरज बलवान, महाभद्र जी कहिये जान || देवयश स्वामी श्री परमेश, अजित वीर्य सम्पूर्ण नरेश । विद्यमान बीसी पढ़ो चितलाय, बाढ़े धर्म पाप क्षय जाय ।। बादे धर्म पाप क्षय जाय, ऐसे चौबीस तीर्थंकर जिन्होंने आठ कर्म, आठ मद, अठारह दोषों को नष्ट कर निर्वाण पद प्राप्त किया,ऐसे जिनेन्द्र देव तिनको बारम्बार नमस्कार हो, ऐसे बीस तीर्थंकर विदेह क्षेत्र में सदा सर्वदा विराजमान तिनको नमस्कार कीजे तो पुण्य की प्राप्ति होय । विनय - बैठक अब कहा दर्शावत हैं आचार्य "शास्त्र सूत्र सिद्धांत नाम अर्थ जी" शास्त्र नाम काहे सों कहिये-जिनमें सच्चे देव, सच्चे गुरू और सच्चे धर्म की महिमा चले-सो कैसे हैं सच्चे देव, गुरू, धर्म और शास्त्र? साँचो देव सोई जामें दोष को न लेश कोई । साँचो गुरू वही जाके उर कछु की न चाह है ॥ सही धर्म वही जहाँ करुणा प्रधान कही । सही ग्रन्थ वही जहाँ आदि अंत एक सो निर्वाह है ॥ यही जग रतन चार ज्ञान ही में परख यार | साँचे लेह झूठे डार नरभव को लाह है ॥ मनुष्य विवेक बिना पशु के समान गिना । यातें यह बात ठीक पारणी सलाह है ॥ ऐसे शाश्वते देव, गुरू, धर्म की महिमा सहित, जामें आचार, विचार, क्रियाओं का प्रतिपादन होय, ज्ञान की उत्पत्ति, कर्मों की खिपति, जीव की मुक्ति, दर्शन, ज्ञान, चरित्र, कलन, चरन, रमन, उवन दृढ, ज्ञान दृढ़, मुक्ति दृढ़, ऐसी त्रिक स्वभाव रूप वार्ता चले, अरू समुच्चय वर्णन जामें होय, ताको नाम शास्त्र जी कहिये और जामें ताड़न मारन है, वध बंधन और विदारण है, या प्रकार कुवार्ता रूप कथन चले ताको नाम कुशास्त्र कहिये । सांचे शास्त्र तो उन्हें ही कहिये है - जाके सुने से जीव को बोध बीज की उत्पत्ति होय तथा आत्म स्वरूप को श्रद्धान और सम्यक्त्व को लाभ होय है। ॥जयन् जय बोलिये जय नमोऽस्तु ॥ अब सूत्र नाम काहे सों कहिये - जामें संक्षेप में ही बहुत सारभूत कथन होय, जाके सुने से जीव के मन, वचन, काय एक रूप हो जायें, नहीं तो मन कहूँ को चले, वचन कछू कहे, काया जाकी स्थिर न होय, ताको एक सूत्र न होय । धन्य हैं- धन्य हैं श्री गुरू तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज जिनके मन, वचन, काय, उत्पन्न, हित,शाह, नो, भाव, द्रव्य यह नौ सूत्र सुधरे तथा दसवें आत्मसूत्र अर्थात् आत्मज्ञान की प्राप्ति कर चौदह सिद्धान्त ग्रन्थों की रचना करी ॥जयन् जय बोलिये जय नमोऽस्तु ॥ ॥ श्री गुरू तारण तरण मंडलाचार्य महाराज की-जय ॥
SR No.009719
Book TitleMandir Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy