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________________ २६ अयर रंज सुइ उत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी मुक्ति रमनि सिद्धि स्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ २९ ॥ सहयार रंजु वैदिति रमन जिनु चेयनन्द सुइ राए । विन्यान रंजु जिन रमन जिनय जिनु, सहजनन्द सुइ पाए । अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ ३० ॥ तित्थयर उवन जिन उत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । तारन तरन समर्थ, अब मैं पाए हैं स्वामी । अब समउ न विहडै सोइ, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ ३१ ॥ विंद कमल सुइ स्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी अगम अगम दस्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ ३२ ॥ तरन विवान जिन जिन उत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । सुयं रमन जिन उत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । सहज सुयं दतु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ ३३ ॥ जिन जिनय रंजु जिननाथ रमन जिनु रमन मुक्ति सुइ राए । परमनन्द तं परम रमन जिनु तं सिद्धि मुक्ति सुइ पाए | अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ ३४ ॥ तं विंद कमल सिद्धि स्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी अर्क विंद संजुत्तु अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ ३५ ॥ (५) विंद विन्यान रस रमनु जिनय जिनु पाए हैं, तरन विवान जिनय जिन उत्तु तरन जिनु पाए हैं । अर्क विंद दसंतु अलष जिनु पाए हैं ।। ३६ ।। सम समय सिद्धि सम्पत्तु रमन जिनु पाए हैं, भय सल्य संक विलयन्तु ममल जिनु पाए हैं । अप्प परम दस्तु सहज जिनु पाए हैं ॥ ३७ ॥ परम गुप्ति उत्पन्न केवली पाए हैं, अन्मोय न्यान सिद्धि रत्तु सुयं जिनु पाए हैं । तं विंद कमल सिद्धि रत्तु सिद्ध जिनु पाए हैं ।। ३८ ।। सुइ समय समय सिद्धि रत्तु समय जिनु पाए हैं, उववन्न नन्त दसंतु दर्स जिनु पाए हैं। परम भाउ उपलब्ध लब्धि जिनु पाए हैं ।। ३९ ।। परम दर्स दस्तु दर्स जिनु पाए हैं, जिननाथ रमन रै जुत्तु रमन जिनु पाए हैं । परम मुक्ति सिद्धि रत्तु नन्द जिनु पाए हैं ॥ ४० ॥ दिपि दिस्टि सब्द पिउ उत्तु सहज जिनु पाए हैं, विंद कमल रस अर्क समय जिनु पाए हैं। तारन तरन समर्थ तरन जिनु पाए हैं ॥ ४१ ॥ सिहु समय सिद्धि सम्पत्तु सिद्ध जिनु पाए हैं, अन्मोय नन्द आनन्द समय जिनु पाए हैं। सिहु समय सिद्धि सम्पत्तु तरन जिनु पाए हैं ।। ४२ ।। ११. मुक्ति श्री फूलना ( फूलना क्र. ०२) (विषय: औकास, ज्ञान स्वभाव में मुक्ति, ज्ञान स्वभाव की महिमा और उदय) चलि चलहुन हो, मुक्ति सिरी तुम्ह न्यान सहाए। कल लंक्रित हो, कम्म न उपजै ममल सुभाए ॥ जिन जिनवर हो, उत्तो स्वामी परम सुभाए । मुनि मुनहु न हो, भवियनगन तुम्ह अप्प सहाए ॥ १ ॥ तुम्हरी अषय रमन रे नारी हो, न्यानी भौहो भौर विनट्ठी । मन हरषिय लो जिन तारन को, जब सब मुक्ति पहुंते हो न्यानी ॥ २ ॥ ॥ आचरी ॥
SR No.009719
Book TitleMandir Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size1 MB
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