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________________ १४२ ४. मन के विकारी भाव नष्ट हो जाते हैं। ५. अनेक उपवासों का फल प्राप्त होता है। ६. दर्शनार्थी का जीवन मंगलमय सुखकारी होता है। ७. आत्मशांति की प्राप्ति होती है। ८. सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। ९. मोक्षमार्ग सहज ही बन जाता है। १०. मनुष्य जीवन की सार्थकता होती है। प्रश्न - चैत्यालय के ऊपर शिखर क्यों बनाते हैं ? उत्तर चैत्यालय के ऊपर शिखर बनाने के कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं : १. शिखर बनाने से चैत्यालय की शोभा पूर्ण होती है। २. शिखर होने से चैत्यालय गरिमामय प्रतीत होता है। ३. शिखर दिखाई देने से धर्म भावनायें जाग्रत होती है। ४. शिखर होने से वीतराग जिन धर्म कि महिमा और बहुमान आता है। ५. मनुष्य, देव, विद्याधर इत्यादिक को शिखर दिखाई देने से चैत्यालय के निश्चित स्थान का बोध होता है। ६. शिखर में ओंकारादि मंगल ध्वनि गुंजायमान होती है। ७. चैत्यालय का उत्तुंग शिखर देखने से मनुष्य का मान खण्डित होता है। प्रश्न - ऐसा माना जाता है कि ध्वज अथवा ध्वजा के बिना चैत्यालय के शिखर की शोभा नहीं होती,इसलिये श्रावकजन चैत्यालय के शिखर पर स्वास्तिक सहित त्रिकोण या चतुष्कोण वाली केशरिया ध्वजा लगाते हैं उससे क्या लाभ है? उत्तर - त्रिकोण को ध्वजा पताका और चतुष्कोण को ध्वज कहते हैं। इस प्रकार के ध्वजा अथवा ध्वज शिखर पर लगाने से निम्नलिखित लाभ हैं :१. चैत्यालय की दूर से ही पहिचान होती है। २. स्वास्तिक सहित केशरिया ध्वज शुभ का प्रतीक है। ३. ध्वजा हवा में फहर - फहर कर मानव मात्र को शांति का संदेश प्रदान करती है। ४. स्वास्तिक सहित केशरिया ध्वज को अष्ट मंगल के अंतर्गत ग्रहण किया जाता है। ५. इस प्रकार की ध्वजा वीतराग धर्म की प्रभावना की प्रतीक है। पाठशाला प्रश्न - स्थानीय स्तर पर समाज में बालक - बालिकाओं में धार्मिक संस्कार के लिये पाठशाला में पढ़ने से क्या लाभ है? उत्तर अपने नगर में धर्म संस्कार के लिये स्थापित पाठशाला में पढ़ने से बालक - बालिकाओं को अनेकों अपूर्व लाभ होते हैं, जिनमें से कुछ संक्षेप में इस प्रकार हैं - ०१. पाठशाला में पढ़ने से वीतराग धर्म का सच्चा ज्ञान होता है। ०२. रूढ़िवाद और प्रपंच से हम दूर होते हैं।
SR No.009719
Book TitleMandir Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size1 MB
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