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________________ १३५ के लिये तथा अपना आत्म कल्याण करने के अभिप्राय को पूर्ण करने के लिये स्वाध्याय करना अत्यंत आवश्यक है। प्रश्न - स्वाध्याय करने का क्या फल है? उत्तर - स्वाध्याय करने से वस्तु स्वरुपकी सच्ची समझ जाग्रत होती है। रत्नत्रय की प्राप्ति एवं परम्परा से केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। प्रश्न - श्रावक का इसके अतिरिक्त और क्या कर्तव्य होना चाहिये? उत्तर - श्रावक को इसके अतिरिक्त अपने आत्म स्वरूप का चिंतन, धर्म कर्म के मर्म का विचार,संसार, शरीर, भोगों से वैराग्य आदि का चिंतन - मनन करना चाहिये । ज्ञान ध्यान का रुचिपूर्वक अभ्यास करना चाहिये। अपने जीवन को नियम, संयम तपमय बनाने का पुरुषार्थ करना चाहिये । गृहस्थ जीवन में दया, दान, परोपकार आदि शुभ कार्य करते हुए निरंतर भेदज्ञान तत्वनिर्णय का अभ्यास करना चाहिये और आत्म कल्याण की भावना से धर्म मार्ग में आगे बढ़ना चाहिये। यही श्रावक का परम कर्तव्य है। प्रश्न - चैत्यालय जी में किस-किसको प्रणाम करना चाहिये? उत्तर - चैत्यालय जी में जिनवाणी के अतिरिक्त यदि कोई वीतरागी संत हों तो उन्हें प्रणाम करना चाहिये, इसके अलावा और किसी को प्रणाम नमस्कार आदि नहीं करना चाहिए। जिनवाणी से बढ़कर और कोई भी नहीं होता। चैत्यालय जी में जिनवाणी के अलावा और किसी को प्रणाम नमस्कार करने से जिनवाणी की अविनय होती है और ज्ञानावरण कर्म का बंध होता है। व्रती श्रावकों को वंदना करना चाहते हैं या अव्रती श्रावकों को जय तारण तरण, नमस्कार आदि करना चाहते हैं वह चैत्यालय जी से बाहर करना चाहिये। प्रश्न - श्री चैत्यालय जी से बाहर आने के पहले क्या करना चाहिये? उत्तर - श्री चैत्यालय जी से बाहर आने के पहले जिनवाणी को नमस्कार विनय वंदना करके दान स्वरूप कुछ राशि दान पात्र में डालना चाहिये। यह राशि चार दान के खाते में जाती है। प्रश्न श्री चैत्यालय जी से बाहर आते समय क्या कहना चाहिये? उत्तर - श्री चैत्यालय जी से बाहर आते समय अस्सही, अस्सही, अस्सही तीन बार बोलना चाहिये। प्रश्न - अस्सही का क्या अर्थ होता है? उत्तर - अस्सही का अर्थ होता है कि जो मैंने धर्म की आराधना की है, वह मेरे जीवन में निरंतर बनी रहे, प्रति समय धर्म मेरे साथ रहे ऐसी भावना भाते हुए कर्तव्य कर्म की राह पर निकलना होता है। इसका दूसरा अभिप्राय है कि अब मैं बाहर जा रहा हूँ, आप अपना स्थान ग्रहण कर सकते हैं। मंदिर विधि से षट् आवश्यक की पूर्ति का विधान - प्रश्न - मंदिर विधि करने से श्रावक के षद् आवश्यक कर्म की पूर्ति किस प्रकार होती है? उत्तर - मंदिर विधि करने से श्रावक के षट् आवश्यक कर्म की पूर्ति सहज होती है, वह इस प्रकार है - मंदिर विधि में देवपूजामंदिर विधि में हम सच्चे देव के गुणों की आराधना करते हैं। तत्त्व मंगल में सबसे पहले देव की वंदना करके भाव पूजा का प्रारम्भ करते हैं। पश्चात् वर्तमान चौबीसी, विदेह क्षेत्र के बीस
SR No.009719
Book TitleMandir Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size1 MB
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