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________________ १२५ नये भजन भजन - १ चेतो चेतन निज में आओ, अंतरात्मा बुला रही है । जग में अपना कोई नहीं है, तू तो ज्ञानानन्दमयी है ।। एक बार अपने में आ जा, अपनी खबर क्यों भुला दई है...... तन धन जन यह कुछ नहीं तेरे, मोह में पड़कर कहता है मेरे ॥ जिनवाणी को उर में धर ले, समता में तुझे सुला रही है...... निश्चय से तू सिद्ध प्रभु सम, कर्मोदय से धारे है तन ।। स्याद्वाद के इस झूले में, माँ जिनवाणी झुला रही है...... मोह राग और द्वेष को छोड़ो, निज स्वभाव से नाता जोड़ो ॥ ब्रह्मानन्द जल्दी तुम चेतो, मृत्यु पंखा डुला रही है.. भजन -२ भगवान हो भगवान हो, तुम आत्मा भगवान हो । यह घर तुम्हारा है नहीं, यहाँ चार दिन मेहमान हो । चक्कर लगाते फिर रहे, इस तन में तुम बंदी बने । अपने ही अज्ञान से, राग द्वेष में हो सने ॥ अपना नहीं है होश, बस इससे ही तुम हैरान हो...... चेत जाओ जाग जाओ, धर्म की श्रद्धा करो । देख लो निज सत्ता शक्ति, मत मोह में अंधा बनो । अनन्त चतुष्टमयधारी हो, इसका तुम्हें बहुमान हो...... रत्नत्रय स्वरूप तुम्हारा, सुख शांति आनन्द धाम हो । पर में मरे तुम जा रहे, इससे ही तुम बदनाम हो । करना धरना कुछ नहीं, अपना ही बस स्वाभिमान हो...... माया तुमको पेरती, राग द्वेष से हैरान हो । अपना आतम बल नहीं, इससे ही तुम परेशान हो । जाग्रत करो पुरुषार्थ अपना, तुम तो सिद्ध समान हो...... ज्ञानानन्द स्वभावी हो, ब्रह्मानंद के धाम हो । निजानन्द में लीन रहो, सहजानन्द सुखधाम हो । स्वरूपानन्द की करो साधना. इससे ही निर्वाण हो......
SR No.009719
Book TitleMandir Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size1 MB
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