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________________ ११७ ] [मालारोहण जी गाथा क्रं. ९ ] [११८ करने के बाद तो फिर कुछ न होगा अब और कुछ तो न करना पड़ेगा ? इसके समाधान में सद्गुरू आगे गाथा कहते हैं गाथा-" तत्वार्थ सार्धं त्वं दर्सनेत्वं, मलं विमुक्तं संमिक्त सुद्धं । न्यानं गुनं चरनस्य सुद्धस्य वीज, नमामि नित्वं सुद्धात्म तत्वं॥ आत्मध्यान किया था वे ही अरिहन्त, सिद्ध परमात्मा हो गये, मुझे भी पूर्ण मुक्त सिद्ध.शुद्ध होना है तो जब तक कर्मों का संयोग नहीं छूटेगा तब तक भव भ्रमण नहीं हटेगा। यदि मोक्ष चाहते हो तो रात-दिन निज शुद्धात्मा का मनन करो, जो शुद्ध, वीतराग, निरंजन कर्म रहित है, चेतना गुणधारी है, ज्ञान चेतनामय है जो स्वयं बुद्ध है,जो संसार विजयी जिनेन्द्र है, जो केवलज्ञान या पूर्ण निरावरण ज्ञान स्वभाव का धारी है, स्वरूप का मनन करते हुए, प्रयास करके, मन को बन्द करके. मौन में तिष्ठ कर अर्थात् अपना उपयोग, इधर से हटाकर, अपने ध्रुव स्वभाव के ज्ञान-श्रद्धान में, एकाग्र किया जावे, निज शुद्धात्मानुभूति की जावे । अभ्यास करने वाले को पहले बहुत अल्प समय की स्थिरता होती है, अभ्यास करते-करते शनैःशनै: स्थिरता बढ़ती जाती है। जिससे नवीन कर्मों का संवर एवं पूर्व कर्मों की निर्जरा होती है तथा आत्म गुणों का विकास होता है। यही उत्तमक्षमादि गुणों का प्रगट होना है और इससे ही क्रोधादि कषाय गलते-विलाते क्षय होते जाते हैं। सम्यग्दृष्टि महात्मा, परम आनन्द व परम ज्ञान की विभूति से पूर्ण शिव पद को पाते हैं। आचार्य श्री तारण स्वामी ने जंगल में रहकर आत्म स्वभाव का अमृत रस बरसाया है सद्गुरू तो धर्म के स्तम्भ हैं, जिन्होंने सत्य धर्म को जीवन्त रखने के लिए, कितने उपसर्ग सहन किए। परम सत्य स्वरूप श्री भगवान महावीर स्वामी की दिव्य देशना को अक्षुण्ण रूप से जीवन्त रखा, धर्म के नाम पर होने वाले बाह्य आडम्बर को सामने खोलकर रख दिया। गुरूदेव की वाणी में तो केवलज्ञान की झंकार गूंजती है, ऐसे महान अध्यात्मवाद के चौदह ग्रंथों की रचना कर बहुत जीवों पर महान उपकार किया है। यह तो सत्य का शंखनाद है, इसकी दृष्टि होना और इस मार्ग पर चलना महान सौभाग्य की बात है। जो जीव इस सत्य धर्म को स्वीकार करेंगे वह अवश्य मुक्ति श्री का वरण करेंगे। प्रश्न- सम्यग्दर्शन की शुद्धि इस बात की हदय से स्वीकारता शब्दार्थ-(तत्वार्थ साध) तत्वों का श्रद्धान करो (त्वं) तुम (दर्सनेत्वं) हमेशा देखो (मलं विमुक्तं) मलों से रहित अर्थात् रागादि पुण्य-पाप, कर्मों से रहित बिल्कुल मुक्त (संमिक्त सुद्ध) शद्धात्म तत्व शद्ध सम्यग्दर्शन है। (न्यानं गुनं) ज्ञानगुण को (चरनस्य) चारित्र को (सुद्धस्य) शुद्ध करने के लिये (वीज) पुरूषार्थ करो (नमामि नित्वं) मैं हमेशा नमस्कार करता हूँ (सुद्धात्म तत्वं) शुद्धात्म तत्व को। विशेषार्थ- हे आत्मन् ! प्रयोजनीय निज शुद्धात्म तत्व का श्रद्धान कर तुम हमेशा निज स्वरूप का दर्शन करो जो शुद्ध सम्यग्दर्शन समस्त कर्म आदि मलों से रहित निर्मल निर्विकार है, अब ज्ञान गुण को और चारित्र गुण को शुद्ध करने का पुरूषार्थ करो, ऐसे महिमावान परम ब्रह्म परमात्म स्वरूप निज शुद्धात्म तत्व को मैं हमेशा नमस्कार करता हूँ। यहाँ इस प्रश्न का समाधान किया जा रहा है कि सम्यग्दर्शन की शुद्धि हृदय से स्वीकारता करने के बाद तो और कुछ न करना पड़ेगा ? इसके लिए सद्गुरू कह रहे हैं कि सम्यग्दर्शन की शुद्धि हो गई, हृदय से स्वीकार कर लिया तो अब निरन्तर हमेशा अपने शुद्धात्म स्वरूप को देखो, जब सब कर्म मलादि से रहित निज शुद्धात्म तत्व है तो जोर लगाओ, सत पुरूषार्थ करो, अपने ममल स्वभाव में स्थित रहो, इसी से एक मुहुर्त ४८ मिनिट में केवलज्ञान प्रगट होता है। यहाँ प्रश्न आता है कि हमने ऐसा अनुभूतियुत स्वीकार तो कर लिया,
SR No.009718
Book TitleMalarohan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year1999
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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