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________________ श्री कमलबत्तीसी जी भजन २४ शुद्धातम को तरसे नजरिया, भगवन दे दो दरसिया ॥ १. बिन दरशन के अंखिया तरसती । १. २. ३. ४. २. ३. ४. ५. जिनवाणी सुन नेहा बरसती ॥ तड़फत है जल बिन मछरिया... भगवन.... तुम्हारा दर्शन ही सम्यग्दर्शन । जिससे मिटता सब जन्म मरण ॥ मोक्षपुरी की डगरिया... भगवन.... तुम्हारे ही दर्शन को संयम तप करते। ज्ञान चारित्र साधु पद धरते ॥ पाते हैं शिवपुर नगरिया.... भगवन ...... स्वानुभूति ही सच्चा सुख है। इससे मिटता सारा दुःख है ॥ आत्मानंद बबरिया... भगवन.... हर पल हर क्षण तुमको ही ध्याते । अहं ब्रह्मास्मि सिद्धोहं गाते ॥ कर दो ऐसी महरिया... भगवन.... भजन २५ हे भव्यो, भेद विज्ञान करो। जिनवाणी का सार यही है, मुक्ति श्री वरो ॥ - जीव अजीव का भेद जान लो, मोह में मती मरो । तुम तो हो भगवान आत्मा, शरीरादि परो ..... क्रमबद्ध पर्याय सब निश्चित, तुम काहे को डरो। निर्भय ज्ञायक रहो आनंद मय, भव संसार तरो कर्म संयोगी जो होना है, टारो नाहिं टरो । तारण तरण का शरणा पाया, मद मिथ्यात्व हरो. इस संसार में क्या रक्खा है, नरभव सफल करो । ज्ञानानंद चलो जल्दी से, साधु पद को धरो www. १११ भजन २६ आओ हम सब मिलकर गायें गुरूवाणी की गाथायें । , है अनन्त उपकार गुरू का, किस विधि उसे चुका पायें ॥ वन्दे तारणम् जय जय वन्दे तारणम् ॥ १. चौदह ग्रंथ महासागर हैं, स्वानुभूति से भरे हुए। उन्हें समझना लक्ष्य हमारा, हम भक्ति से भरे हुए । गुरू वाणी का आश्रय लेकर, हम शुद्धातम को ध्यायें, है अनन्त.... २. कैसा विषम समय आया था, जब गुरूवर ने जन्म लिया । आडम्बर के तूफानों ने, सत्य धर्म को भुला दिया | तब गुरूवर ने दीप जलाया, जिससे जीव संभल जायें, है अनन्त ३. अमृतमय गुरू की वाणी है, हम सब अमृत पान करें। जन्म जरा भव रोग निवारें, सदा धर्म का ध्यान धरें ॥ हम अरिहंत सिद्ध बन जायें, यही भावना नित भायें, है अनन्त ४. शुद्ध स्वभाव धर्म है अपना, पहले यही समझना है । क्रियाकाण्ड में धर्म नहीं है, ब्रह्मानंद में रहना है ॥ जागो जागो हे जग जीवो, सत्य सभी को बतलायें, है अनन्त २७ आतम है १. २. ३. ४. श्री कमलबत्तीसी जी ५. - भजन आतम है, निज आतम देव परमातम है ॥ अलख निरंजन शिवपुर वासी 1 ध्रुव तत्व है ममल स्वभावी... आतम है... एक अखण्ड सदा अविनाशी I चेतन अमल सहज सुख राशि ...आतम है... ज्ञानानंद स्वभावी आतम परम ब्रह्म है निज शुद्धातम... आतम है... ध्रुव धाम में रहने वाला अहं ब्रह्मास्मि कहने वाला सच्चिदानंद घन अरस अरूपी केवलज्ञानी सिद्ध स्वरूपी आतम है... I ...आतम है... I -
SR No.009717
Book TitleKamal Battisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year1999
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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