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________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणीजी श्री ममल पाहुइ जी सु स्कंध ममल पौ दु स्कंध समल चौ, उत्पन्न कमल संभाऊ । हिययार रमन मौ तं अरुह चलन पौ, तं अर्क विंद स सहाउ ॥ ३ ॥ ॥सुहगम्य.॥ आगंतु अर्ध रुई रमन सहज सुई, _ हिय हुवयार संजुत्तु । उव उवन चष्य मै दिस्टि इस्टि रै, चष्य अचष्य पउत्तु ॥ ४ ॥ ॥सुह गम्य.॥ सहयार समय सुइ नंत ममल मै, ___ तं गुपित न्यान संजुत्तु । तं गुहिज कमल रुई सहजनंद मई, ___ गुरु गुपित हिययार संजुत्तु ॥ ५ ॥ ॥सुह गम्य.॥ गुरु गुपित दिट्ठ मई विवान सहज सुई, पय पद विंद स उत्तु । तं अर्थति अर्थह समय समर्थह, पंचार्थ ममल संजुत्तु ॥ ६ ॥ ॥सुह गम्य.॥ तं परम परम पौ नन्द अनंद मौ, चेयन नंद सहाउ । तं सहजनंद मौ विन्यान न्यान पौ, परमानंद सहाउ ॥ ७ ॥ ॥सुह गम्य.॥ तं नंत न्यान पौ दर्स दर्स मौ, वीर्यानंत सुभाऊ । सुह गम्य रमन रस विन्यान विनय जस, तं नंत सौष्य स सहाउ ॥ ८ ॥ ॥सुह गम्य.॥ तं ध्यान उत्तु जिन समय विलय मन, न्यान विन्यान सुभाउ । जं कम्मु गलिय सुइ सुह गम्य रमन रै, तं परम न्यान स सहाउ ॥ ९ ॥ ॥ सुह गम्य.॥ आरतिहि आरति पौ अनिस्ट संजोय मी, तं इस्ट विओय संजुत्तु । तं पिंड चिंत मै पर पर्जय रै, निदान नरय संजुत्तु ॥ १० ॥ ॥सुह गम्य.॥ आरति हि रयन पौ तं इस्ट संजोय मौ, न्यान विन्यान सचिंतु । तं नंत सहज रुई नंद परम पय, तं पर पर्जय विलयंतु ॥ ११ ॥ । सुह गम्य.॥ तं रौद्र झान सुई सहयार हिययार मै, हिंसानंद स उत्तु । (२१२)
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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