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________________ ६७] जयमाल] [अध्यात्म अमृत सम्यग्ज्ञान का सूर्य उदित हो, मचती जय जयकार है। बोधि भावना भाने से, होता आतम उद्धार है ॥ १२.धर्मभावना चेतन लक्षण धर्म जगत में, एकमात्र सुखदाई है । निज स्वभाव की साधना करके, सबने मुक्ति पाई है। धर्म की महिमा देखो सामने, कैसी अपरंपार है । धर्म भावना भाने से, होता आतम उद्धार है ॥ सुख शान्ति आनंद का दाता, रत्नत्रय मयी धर्म है। उत्तम क्षमा अहिंसा आदि, सभी इसी का मर्म है ।। धर्म साधना ही जीवन में, एक मात्र सुखकार है । धर्म भावना भाने से, होता आतम उद्धार है ॥ ३४. सतत् प्रणाम १. चिदानंद धुव शुद्ध आत्मा, चेतन सत्ता है भगवान । शुद्ध बुद्ध अविनाशी ज्ञायक, ब्रह्म स्वरूपी सिद्ध समान ॥ निज स्वभाव में रमता जमता, रहता है अपने ध्रुवधाम । तारण तरण कहाने वाले, सत् स्वरूप को सतत् प्रणाम ॥ २. कर्मों का क्षय हो जाता है, निज स्वभाव में रहने से । सारे भाव बिला जाते हैं, ॐ नमः के कहने से ॥ शुद्ध ज्ञान दर्शन का धारी, एक मात्र है आतमराम । तारण तरण कहाने वाले, सत् स्वरूप को सतत् प्रणाम ।। ३. तीन लोक का ज्ञायक है, सर्वज्ञ स्वभावी केवलज्ञान । निज स्वभाव में लीन हो गये, बनते हैं वे ही भगवान ।। भेद ज्ञान तत्व निर्णय करके, बैठ गया जो निज धुवधाम । तारण तरण कहाने वाले, सत् स्वरूप को सतत् प्रणाम । ४. वस्तु स्वरूप सामने देखो, शुद्धातम का करलो ध्यान । पर पर्याय तरफ मत देखो, जो चाहो यदि निज कल्याण ॥ निज घर रहो निजानंद पाओ, पर घर होता है बदनाम । तारण तरण कहाने वाले, सत् स्वरूप को सतत् प्रणाम ।। त्रिकालवर्ती पर्याय क्रमबद्ध, जो होना वह हो ही रहा । जिसका कोई अस्तित्व नहीं है, आता जाता खो ही रहा । धुवतत्व तो अटल अचल है, पूर्ण शुद्ध और है निष्काम । तारण तरण कहाने वाले, सत् स्वरूप को सतत् प्रणाम ॥ ६. कल रंजन, मनरंज गारव, जन रंजन होता है राग । आतम के यह महाशत्रु हैं, है संसार की जलती आग || ज्ञान स्वभाव में रहने से ही, होता इनका काम तमाम । तारण तरण कहाने वाले, सत् स्वरूप को सतत् प्रणाम । ७. दर्शन मोह से अंधा प्राणी, जग में करता जन्म-मरण । सम्यक् दर्शन ज्ञान चरण से, करता मुक्ति श्री वरण ।। ज्ञानानंद स्वभावी हो तुम, अब तुमको जग से क्या काम । तारण तरण कहाने वाले, सत् स्वरूप को सतत् प्रणाम ।। धुव तत्व निज शुद्धातम में, मुक्ति श्री से रमण करो। अब संसार तरफ मत देखो, जल्दी साधु पद को धरो ॥ धुव तत्व की धूम मचाओ, रहो सदा अपने ध्रुव धाम । तारण तरण कहाने वाले, सत् स्वरूप को सतत् प्रणाम ।। जय तारण तरण सच्चे देव तारण तरण सच्चे गुरू तारण तरण सच्चा धर्म तारण तरण शुद्धात्मा तारण तरण जय तारण तरण श्री गुरू तारण तरण मण्डलाचार्य महाराज की जय
SR No.009710
Book TitleAdhyatma Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year1999
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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