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________________ ४१] [अध्यात्म अमृत जयमाल] द्रव्य दृष्टि के द्वारा जिसको, हुआ स्व-पर का ज्ञान है। अष्ट पाहुड को जानने वाला, पाता पद निर्वाण है ॥ २०. श्री अमृत कलश जयमाल ७. भाव प्रधान ही जैन धर्म है, भाव का जगत पसारा है। शुभ अशुभ भाव संसार के कारण, शुद्ध भाव जयकारा है। परम पारिणामिक भाववान ही, ज्ञानी श्रेष्ठ महान है। अष्ट पाहुड को जानने वाला, पाता पद निर्वाण है ॥ १. स्वानुभूति में चकचकासते, निज शुद्धात्म स्वरूप है। आनंद परमानंद का दाता, चेतन अरस अरूप है ।। सम्यक् दर्शन ज्ञान की महिमा, मोक्षमार्ग दर्शाये हैं। कुन्द कुन्द के समयसार पर, अमृत कलश चढ़ाये हैं। ८. वीतराग निर्ग्रन्थ दिगम्बर, मोक्ष महल अधिकारी है। पाप विषय कषाय से छूटा, परम भाव निर्विकारी है । आर्त रौद्र ध्यानों का त्यागी, धर्म शुक्ल ही ध्यान है। अष्ट पाहुड को जानने वाला, पाता पद निर्वाण है । एकत्वे नियतस्य शुद्ध नय, जिन आगम प्रमाण है। परभावों से भिन्न रहा जो, खुद आतम भगवान है ॥ भूतं भांत मभूत मेव जो, निज अनुभूति में लाये हैं। कुन्द कुन्द के समयसार पर, अमृत कलश चढाये हैं। ३. लिंग तीन हैं मुक्ति मार्ग के, सम्यक दृष्टि ज्ञानी हो। साधु श्रावक अविरत साधक, वीतराग विज्ञानी हो । जिनलिंगी जिनमुद्रा धारी, चेतन ही भगवान है । अष्टपाहुड को जानने वाला, पाता पद निर्वाण है । अबद्ध अस्पृष्ट अनन्य नियत जो, अविशेष असंयुक्त है। ऐसा आतम शुद्धातम मैं, अनुभव प्रमाण अव्यक्त है ॥ चेतन ज्योति प्रकाशित करते, सहजानंद बरसाये हैं। कुन्द कुन्द के समयसार पर, अमृत कलश चढाये हैं। १०. शील धर्म संसार पूज्य है, सब धर्मों का मूल है । कुन्द कुन्द कुन्दन सा खिलता, आत्म कमल का फूल है ॥ ज्ञानानंद स्वभावी हूँ मैं, केवलज्ञान प्रमाण है । अष्ट पाहुड को जानने वाला, पाता पद निर्वाण है ॥ ४. कथमपि हि लभन्ते भेदविज्ञान से,जिनने निज को जाना है। समयसार का सार उन्होंने, अपने में पहिचाना है । त्यजतु जगदिदानी मोह मान को, नरभव सफल बनाये हैं। कुन्द कुन्द के समयसार पर, अमृत कलश चढाये हैं। (दोहा) अष्टपाहुड़ की देशना, जैनागम का डंड | कथनी करनी भिन्न हो, धर्म नहीं पाखण्ड ।। कुन्द कुन्द आचार्य का, समझो धर्म विज्ञान । महावीर अनुयायिओ, जो चाहो कल्याण ।। ज्ञेय भाव भावक भावों से, शाश्वत सदा निराला हूँ। अहमिक्को खलु शुद्धो हूँ मैं, अनन्त चतुष्टय वाला हूँ | रत्नत्रय मयी सदा अरूपी, शुद्धातम प्रगटाये हैं। कुन्द कुन्द के समयसार पर, अमृत कलश चढ़ाये हैं। ६. आत्माराम मनन्त धाम महसा, ज्ञान ज्योति से प्रगटा है। जीव अजीव पुण्य पाप सब, नृत्य रणांगन विघटा है।
SR No.009710
Book TitleAdhyatma Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year1999
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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