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________________ ३१] जयमाल [अध्यात्म अमृत आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है। अन्मोय कलन जिन श्रेणी, यह नाम माला का मंत्र है ।। १५. श्री समय सार जयमाल ७. यह पाती लिख थाती सौंपी, रूइया जिन तसलीम कियो । कमलावती विरउ ब्रह्मचारी, दयाल प्रसाद आशीष दियो । त्रितालीस लाख भव्य जीवों का, बना यह तारण पंथ है। अन्मोय कलन जिन श्रेणी, यह नाम माला का मंत्र है । १. मैं आतम शुद्धातम हूँ, परमातम सिद्ध समान हूँ। ध्रुव तत्व टंकोत्कीर्ण अप्पा, ज्ञायक ज्ञान महान हूँ | भेदज्ञान तत्व निर्णय द्वारा, वस्तु स्वरूप स्वीकार है। द्रव्य दृष्टि का हो जाना ही, समयसार का सार है । एक सौ आठ मंडल के स्वामी, मंडलाचार्य कहाये हैं। तारण तरण गुरू की जय हो, धर्मध्वजा फहराये हैं। गांव गांव में भ्रमण करके, छुड़ा दिया परतंत्र है । अन्मोय कलन जिन श्रेणी, यह नाम माला का मंत्र है । ध्रुव ध्रुव हूँ धुव तत्व हूँ, एक अखंड निराला हूँ। निरावरण चैतन्य ज्योति मैं, अनन्त चतुष्टय वाला हूँ॥ सम्यक्दर्शन ज्ञान चरण सब, भेद विकल्प व्यवहार है। द्रव्य दृष्टि का हो जाना ही, समयसार का सार है । ॐ नमः प्रणम्य उत्पन्न कर, आनंद परमानंद रहो । सिद्ध स्वभाव स्वयं का देखो, सहजोपनीत का मार्ग गहो । धर्म साधना आतम हित में, हर व्यक्ति स्वतंत्र है । अन्मोय कलन जिन श्रेणी, यह नाम माला का मंत्र है ।। ३. अबद्ध अस्पर्शी अनन्य नियत हूँ, अविशेष असंयुक्त हैं। स्वानुभूति में दिखने वाला, पूर्ण शुद्ध और मुक्त हूँ॥ ज्ञेय भाव से भिन्न कमलवत, भावक भाव असार हैं। द्रव्य दृष्टि का हो जाना ही, समयसार का सार है ।। १०. पंडित सरउ, उदय, भीषम ने, यह सारा इतिहास लिखा । कई उपसर्ग सहे सद्गुरू ने, सत्य धर्म से नहीं डिगा ।। ज्ञानानंद स्वभाव लीन हो, बने स्वयं भगवन्त हैं। अन्मोय कलन जिन श्रेणी, यह नाम माला का मंत्र है । ४. नहिं प्रमत्त-अप्रमत्त नहीं जो, परम पारिणामिक भाव है । अहमिक्को खलु शुद्धो हूँ मैं, जहाँ न कोई विभाव है ॥ वर्ण रूप रस गंध से न्यारा, ममल सदा अविकार है। द्रव्य दृष्टि का हो जाना ही, समयसार का सार है । (दोहा) नाम-काम और दाम का, खेल है सब संसार । जीव अनादि से फंसे, इस ही मायाचार ।। छूटना है संसार से, धरो आत्म का ध्यान । ज्ञानानंद स्वभाव रह, पाओ पद निर्वाण || अनादि अनन्त अचल अविनाशी, स्वसंवेद्य प्रकाशक हूँ। नवतत्वों को जानने वाला, चेतन ज्योति ज्ञायक हूँ | पुद्गल द्रव्य शुद्ध परमाणु, जिसका जग विस्तार है। द्रव्य दृष्टि का हो जाना ही, समयसार का सार है । ६. वर्ग वर्गणा स्पर्धक सब, कर्म नोकर्म में आते हैं। बद्ध अबद्ध जीव का होना, सब नय पक्ष कहाते हैं ।
SR No.009710
Book TitleAdhyatma Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year1999
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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