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________________ २७] [अध्यात्म अमृत जयमाल] [૨૮ पर पर्याय से दृष्टि हटाकर, बैठा आतम नांव है । निर्विकल्प सानन्द समाधि, ये ही शून्य स्वभाव है । ७. सींग सों नातो पूँछ से बैर, ये ही जगत स्वभाव है। उपयोग हीन आचरण है करता, रहता सदा विभाव है। मुक्ति प्रमाण पात्र वह होता, जिसको उमंग उछाव है। निर्विकल्प सानन्द समाधि, ये ही शून्य स्वभाव है ॥ १३. श्री छद्मस्थ वाणी जयमाल १. ॐ ह्रीं श्रीं अरहंत सिद्ध ही, ध्रुव सर्वज्ञ स्वभाव है। जय सुयं जयं उत्पन्न जयं, परम पारिणामिक भाव है। निज स्वभाव की शक्ति जगाकर, हुआ जो सम्यग्ज्ञानी है। सद्गुरू की छमस्थ वाणी, जिनवर की जिनवाणी है । ८. सैंतालीस शून्य सद्गुरू ने ध्याये, तारण तरण कहाये हैं। अतीन्द्रिय आनंद के अमृत झरने, इन ग्रंथों में बहाये हैं। पढे सुने जो करे साधना, मिटे जगत भटकाव है। निर्विकल्प सानन्द समाधि, ये ही शून्य स्वभाव है ।। २. संतों का जीवन परिचय ही, ज्ञान ध्यान से होता है। जड़ शरीर के साधन से, अज्ञान तिमिर को खोता है | तारण तरण की जीवन गाथा, कहती छद्मस्थ वाणी है। सद्गुरू की छद्मस्थ वाणी, जिनवर की जिनवाणी है । जैसे जिनवर परमातम हैं, अनन्त चतुष्टयधारी हैं। वैसे सब भगवान आतमा, स्वतंत्र सत्ता न्यारी है । ज्ञानानंद स्वभावी हूं मैं, कोई न भेदभाव है । निर्विकल्प सानन्द समाधि, ये ही शून्य स्वभाव है ॥ ३. वीर प्रभु के समवशरण का, आंखों देखा हाल कहा। उत्पन्न ज्योति कमलावती और,रूइया जिन का साथ रहा। कलनावती रमनावती और, भक्तावती बखानी है। सद्गुरू की छदास्थ वाणी, जिनवर की जिनवाणी है ॥ १०. सम्यग्दर्शन ज्ञान के द्वारा, जिसने निज को पहिचाना। अपनी सत्ता शक्ति जगाकर, सत्पुरुषार्थ है यह ठाना ॥ ध्यान समाधि लगाता अपनी, जिसको इतना चाव है। निर्विकल्प सानन्द समाधि, ये ही शून्य स्वभाव है ॥ ४. ॐनमः सिद्धं का मन्त्र ही, तारण पंथ आधार है । मुक्ति सुख को देने वाला, यही समय का सार है ।। ब्रह्मदेव सुखेन विरउ सब, कहते सद्गुरू वाणी है। सद्गुरू की छयास्थ वाणी, जिनवर की जिनवाणी है । (दोहा) शून्य स्वभाव की साधना, होती द्रव्य स्वभाव । वस्तु स्वरूप के जानते, मिटते सभी विभाव ॥ योग-ध्यान निज ज्ञान बल, होती शून्य समाधि । ज्ञानानंद में लीन रह, मिलती जगत समाधि । ५. जिनवर स्वामी तू बड़ो, मैं जिनवर अनुगामी हूं। अर्थति अर्थह सिद्ध ध्रुव पद, मैं भी अपना स्वामी हूं। जैसे ले सको वैसे ले लो, एकई टेर लगानी है। सद्गुरू की छद्मस्थ वाणी, जिनवर की जिनवाणी है | ६. उत्पन्न जय उत्पन्न प्रवेश हो, यही तो सत्य प्रमाण है। जो उन कियो सो मैं कियो, वह बनता खुद भगवान है।
SR No.009710
Book TitleAdhyatma Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year1999
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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