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________________ १९] जयमाल [२० [अध्यात्म अमृत दर्शन मोह न्यान आवरण, दर्शनावरण ठिकाना है। चेतो जागो अभी समझ लो, वरना चौबीसठाणा है । ९. श्री ममलपाहुड़ जयमाल १. ७. शल्य शंक भय लगे अनादि, मोह अज्ञान निदाना है। न्यान रमण जिननाथ ध्रुव से, इनका मिला प्रमाणा है । हितकार न्यान सहकार न्यान, ज्ञान ही भेदविज्ञाना है। चेतो जागो अभी समझ लो, वरना चौबीसठाणा है ॥ देव गुरू व धर्म आत्मा, आतम ही परमातम है । जिनने निज स्वरूप पहिचाना, ध्रुव तत्व शुद्धातम है ॥ ममल स्वभाव में रहने का, पुरूषार्थ हुआ बलवान है। ममल पाहुड में डूबने वाला, बनता जिन भगवान है ॥ ८. न्यान कमल अतीन्द्रिय सत्ता, इसको अब स्वीकार करो। सुख साता चैतन्य बोध कर, जल्दी साधु पद को धरो ।। बारह हजार छत्तीस बार का, जामन मरण मिटाना है। चेतो जागो अभी समझ लो, वरना चौबीसठाणा है । २. ममल पाहुड बत्तीस सौ गाथा, एक सौ चौंसठ फूलना हैं। मोक्षमार्ग की तमिलनाडु यह, परमानंद का झूलना है । इसका साधक सम्यग्दृष्टि, ज्ञानी श्रेष्ठ महान है । ममल पाहुड में डूबने वाला, बनता जिन भगवान है । ज्ञानानन्द निजानन्द रत हो, सहजानंद को पाना है। ब्रह्मानंद स्वरूपानंद संग, मिलता मुक्ति ठिकाना है | स्थावर विकलत्रय त्रस से, अब भी मुक्ति पाना है। चेतो जागो अभी समझ लो, वरना चौबीसठाणा है ॥ ३. मैं हूं सिद्ध स्वरूपी चेतन, ध्रुव तत्व शुद्धातम हूं। ज्ञानानंद स्वभावी हूं मैं, परम ब्रह्म परमातम हूं।। पर्यायें सब क्रमबद्ध हैं, ऐसा दृढ़ श्रद्धान है । ममल पाहुड में डूबने वाला, बनता जिन भगवान है ॥ ४. १०. पयायें सब नाशवान हैं, ध्रुव सत्ता को पहिचानो। मै आतम शुद्धातम हूं बस, इतना सत्य धर्म जानो ।। सिद्ध मुक्त निज का स्वभाव, यह तारण तरण बखाना है। चेतो जागो अभी समझ लो, वरना चौबीसठाणा है ।। ध्रुव तत्व पर दृष्टि जिसकी, ममल स्वभाव में लीन है। पर पर्याय का लक्ष्य छोड़कर, ब्रह्मानंद आसीन है। संयम तप की करके साधना, धरता आतम ध्यान है। ममल पाहुड में डूबने वाला, बनता जिन भगवान है ॥ (दोहा) चौबीस ठाणा जगत में, काल अनादि अनन्त । जो इसके चक्कर फंसा, मिला न भव का अंत ।। ध्रुव तत्व शुद्धात्मा, लक्ष्य बनाया जाये । भव भ्रमण का अंत हो, मोक्ष परम पद पाये ।। ५. मुक्ति श्री पर दृष्टि लगी है, परमानंद मय होना है। अब संसार में नहीं रहना है, पर्यायी भय खोना है । अनुभूति युत सम्यग्दर्शन, जगा यह सम्यग्ज्ञान है । ममल पाहुड में डूबने वाला, बनता जिन भगवान है ॥ शल्य शंक भय सभी बिला गये, शुद्धातम प्रकाश हुआ। मुक्तिमार्ग अब सामने दिखता, संयम चरण विकास हुआ।
SR No.009710
Book TitleAdhyatma Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year1999
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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