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________________ वक्रोक्तिजीवितम् ( ऐसा उपर्युक्त गुणविशिष्ट ) काव्य जिसके द्वारा उस ( अध्ययन ) काल में एवं बाद में रस के प्रवाह से सुन्दर सम्पन्न होता है वह ( तत्त्व ) अब ( इस ग्रन्थ में ) वताया जाता है ॥ ८ ॥ १६ ये दो अन्तर श्लोक हैं ।। ५ ।। अलंकृतिरलं कार्यमपोद्धृत्य विवेच्यते । तदुपायतया तत्त्वं सालंकारस्य काव्यता ॥ ६ ॥ उस ( काव्य ) का उपाय होने के कारण अलंकार्य ( वाच्य और वाचक) का अलग अलग करके विवेचन किया जाता है । वस्तुतः अलंकार से युक्त ( अलंकार्य शब्द एवं अर्थ ) की ही काव्यता होती है | ( अर्थात् यदि अलंकार और अलंकार्य को अलग कर दिया जाय तो काव्य की सत्ता ही समाप्त हो जायगी क्योंकि अलंकार शब्द एवं अर्थ ही काव्य होते हैं पर उनका जो अलग-अलग विवेचन किया जाता है वह उनके स्पष्ट ज्ञान के लिए है एवं वैसी परम्परा भी प्रचलित होने के कारण है ॥ ६ ॥ अलंकृविश्लंकरणम् अलंक्रियते ययेति विगृह्य । सा बिवेच्यते विचार्यते । यच्चालंकार्यमकलंकरणीयं वाचकरूपं वाच्यरूपं च तदपि विवेच्यते । तयोः सामान्यविशेषलक्षणद्वारेण स्वरूपनिरूपणं क्रियते । कथम् — अपोद्धृत्य | निष्कृष्य पृथक् पृथगवस्थाप्य, यत्र समुदायरूपे तयोरन्तर्भावस्तस्माद्विभज्य । केन हेतुना - तदुपायतया । तदिति काव्यं परामृश्यते । तस्योपायस्तदुपायस्तस्य भावस्तदुपायता तथा हेतुभूतया । तस्मादेवंविधो विवेकः काव्यव्युत्पत्त्युपायतां प्रतिपद्यते । दृश्यते च समुदायान्तःपातिनामसत्यभूतानामपि व्युत्पत्तिनिमित्तम पोद्धृत्य विवेचनम् । यथा- पदान्तर्भूतयोः प्रकृतिप्रत्यययोर्वाक्यान्तर्भूतानां पदानां चेति । यद्येवमसत्यभूतोऽप्यपोद्धारस्तदुपायतया क्रियते तत् किं पुनः सत्यमित्याह -तत्त्वं सालंकारस्य काव्यता । अयमत्र परमार्थ:- सालंकारस्यालंकरणसहितस्य सकलस्य निरस्तात्रयवस्य सतः समुदायस्य काव्यता कविकर्मत्वम् | तेनालंकृतस्य काव्यत्वमिति स्थितिः, न पुनः काव्यस्यालंकारयोग इति ॥ ६ ॥ अलंकृति अर्थात् अलङ्कार | अलंकृत किया जाता है जिसके द्वारा ( वह अलंकृति होती है ऐसा विग्रह करके अलंकृति शब्द का अर्थ अलङ्कार होता है )। उसका विवेचन अर्थात् विचार किया जाता है और जो अलङ्कार्य अर्थात् ( अलङ्कारों द्वारा ) अलङ्करणीय अर्थात् वाचक रूप एवं
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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