SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथमोन्मेषः वह वक्रोक्ति होगी। अतः उसे काव्य कहेंगे। इसी लिए आचार्य कुन्तक ने स्वभावोक्ति की अलङ्कारता का खण्डन करते हुए उसकी अलङ्कार्यता प्रस्तुत की है। प्रन्थारम्भेऽभिमतदेवतानमस्कारकरणं समाचारः, तस्मात्तदेव तावदुपक्रमते वन्दे कवीन्द्रवक्वेन्दुलास्यमन्दिरनर्तकीम् । देवीं सूक्तिपरिस्पन्दसुन्दराभिनयोज्ज्वलाम् ॥ १॥ - ग्रन्थ के प्रारम्भ में इष्टदेव के प्रति नमस्कार करना (ग्रन्थकारों का समाचार ) है इसी लिए तो उसी ( अभिमत देवता-नमस्कार ) को प्रारम्भ करते हैं ( मैं ) कविप्रवरों के मुखचन्द्ररूपी नृत्यभवन में नृत्य करने वाली, सुभाषित के विलासरूपी सुन्दर अभिनयों के कारण उज्ज्वल सुशोभित देवी ( वाग्देवता ) की स्तुति करता हूँ ॥ १॥ टिप्पणी :-जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि कुन्तक शैव थे इसीलिए उनके ग्रन्थ में यत्रतत्र सर्वत्र शैवदर्शन की छाप झलकती है, इस कारिका में भी आचार्य ने ऐसी शब्दावली का प्रयोग किया है जिससे कि दूसरा शिव-शक्तिपरक अर्थ भी सूचित होता है। (वक्त्रे इन्दुर्यस्य सः शिवः इत्यर्यः ) अर्थात् वक्वेन्दु भगवान् शिव के लास्यमन्दिर ( अर्थात् जगत् ) की नर्तकी, एवं अपने परिस्पन्दों के सुन्दर अभिनय से उज्ज्वल (शृङ्गारिणी'उज्ज्वलस्तुविकासिनि शृङ्गारे विशदे' इति 'हेमः ) देवी शक्ति की वन्दना करता हूँ। जैसा कि पहले बताया गया है कि यह जगत् शक्ति का स्पन्द या परिस्पन्द है। अतः यह परिस्पन्द शक्तिरूपा नर्तकी का अभिनय हुआ। जगत् की सृष्टि तो शक्ति करती है अतः उसे नर्तकी कहा गया है क्योंकि शिव तो निर्विकार है। देवीं वन्दे, देवतां स्तौमि । कामित्याह-कवीन्द्रवक्त्रेन्दुलास्यमन्दिरनर्तकीम् | कवीन्द्राः कविप्रवरास्तेषां वक्त्रेन्दुर्मुखचन्द्रः स एव लास्यमन्दिरं नाट्यवेश्म, तत्र नर्तकी लासिकाम् । किविशिष्टाम् । सूक्तिपरिस्पन्दसुन्दराभिनयोज्ज्वलाम् । सूक्तिपरिस्पन्दाः सुभाषितविलसितानि तान्येव सुन्दरा अभिनयाः सुकुमाराः सात्त्विकादयस्तैरुज्ज्वलां भ्राजमानाम् । या किल सत्कविवक्त्रे लास्यवेश्मनीय नर्तकी सविला
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy