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________________ ( ६४ ) ( ४ ) जैसा हमने पहले सिद्ध किया था कि यह जगत् वस्तुतः शक्ति का ही विलसित है, साथ ही जगत् स्पन्दरूप ही है। अतः विलसित और स्पन्द पर्याय हए । इस लिए स्पन्द का कुन्तक द्वारा विलसित के पर्याय रूप में प्रयोग भी सङ्गत ही है। :: (५) स्पन्द का स्वरूप अर्थ में भी प्रयोग असङ्गत नहीं क्योंकि शक्ति का स्पन्द शक्ति का स्वरूप ही होता है। उससे भिन्न नहीं । जैसे चिड़िया के डैनों में स्पन्दन हुआ और चिड़िया के पंखे कुछ फूल पाए तो चिड़िया अपना रूप बदल कर हाथी तो नहीं हो जाती । अतः सिद्ध हुआ कि स्पन्द स्वरूप ही होता है । ( ६ ) स्पन्द स्फुरित्व रूप तो होता ही है क्योंकि स्फुरितत्व के कारण हो तो यह स्पन्द कहा जाता है। जैसा व्युत्पत्ति से हो ज्ञात है क्योंकि स्पन्द की निष्पत्ति 'स्पदि किश्चिच्चलने' धातु से होती है--स्पन्दनात् स्पन्दः।' . अतः यह सिद्ध हुआ कि कुन्तक द्वारा प्रयुक्त स्पन्द के सभी पर्याय स्पन्द के दार्शनिक अर्थ से सर्वथा सङ्गत हैं। उनका 'वक्रोक्तिजीवित' जैसे साहित्यप्रंथ को व्याख्या में इस प्रकार प्रयोग उनकी शैवाद्वैत को बहुत बड़ी पहुँच का परिचायक है, इसमें कोई संशय नहीं रह जाता।
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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