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________________ वक्रोक्तिजीवितम् वक्रता अर्थात् बांकापन होता है। जहां एक फल की प्राप्ति में लगा हुआ भी नायक अर्थात् जिसमें एक फल की प्राप्ति में लगा हुआ अर्थात् एक ही अभीष्ट वस्तु के सिद्ध करने में प्रयत्न करता हुआ भी नायक उसके समान सिद्धियों वाले दूसरे अनन्त फलों के प्रति निमित्त बनता है। अनन्त अर्थात् असंख्य उसके समान प्रतिपत्तियों वाले अर्थात् अधिकारिक फल के समान सिद्धियों वाले फलान्तर अर्थात् साध्य रूप अन्य वस्तुओं के प्रति अर्थात् प्रस्तुत अर्थ की सिद्धि से ही सिद्धि को प्राप्त कर लेने वाले ( फलों का निमित्त बन जाता है ) । इसके बाद इस कारिका की वृत्ति का शेष भाग गायब प्रतीत होता है यद्यपि पाण्डुलिपि में पाठलोप सूचक कोई चिह्न नहीं है परन्तु यह बात अत्यन्त स्पष्ट है, क्योंकि कारिका के कुछ शब्दों की उक्त वृत्ति भाग में व्याख्या नहीं की गई है एवं कोई उदाहरण भी नहीं प्रस्तुत किया गया है । साथ ही आगे आने वाली कारिका का भी एक चरण गायब ही है । और वह वृत्ति के साथ ही पाण्डुलिपि में आयी है । अतः प्रतीत होता है कि सम्भवतः एक पन्ना ही गायब हो गया है, इसीलिए पाठलोपसूचक चिह्न नहीं दिया गया है । इस कारिका की वृत्ति का एक अंश २५ वी कारिका की वृत्तिभाग के अन्त में उद्धृत प्रतीत होता है जो इस प्रकार है यथा नागानन्दे-तत्र दुर्निवारवैरादपि वैनतेयान्तकादेक (म् ) सकलकारुणिकचूडामणिः शंखचूडं जीमूतवाहनो देहदानादभिरक्षन्न केवलं तत्कुल (म्)... अर्थात-जैसे नागानन्द में। वहाँ दूर न किये जा सकने वाले वैर वाले गरुड से अकेले शंखचड को समस्त दयालुओं के शिरोमणि जीमूतवाहन ने ( अपने ) शरीर को प्रदान करने से रक्षा करते हुए केवल उसके कुल को ( ही नहीं बचाया अपितु अनेक अन्य राज्यलाभादि फलों को प्राप्त किया )। कुन्तक अब अन्य प्रबन्धवक्रता प्रकार को इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं -- अस्तां वस्तुषु वैदग्ध्यं काव्ये कामपि वक्रताम् । प्रधानसंविधानाङ्कनाम्नापि कुरुते कविः ॥ २४ ॥ काव्य में प्रतिपाद्य पदार्थ के सौन्दर्य को तो रहने दीजिये, केवल प्रधान योजना के चिह्न वाले नाम के द्वारा भी कवि किसी ( अपूर्व ) वक्रता को उत्पन्न कर देता है ॥ २४॥ . भास्तां वस्तुषु वैदग्भ्यम्-आस्तां दूरत एव वर्ततां वस्तुषु अभि.. धेयेषु प्रकरणेषु प्रतिपायेषु वैदग्ध विच्छित्तिः। काव्ये कामपि वक्रता
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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