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________________ ( १० ) ( क ) 'काव्यकाञ्चनकषाश्ममानिना कुस्तकेन निजकाम्यलक्ष्मणि । यस्य सर्वनिरवातोदिता श्लोक एष स निर्दिशतो मया ॥" ( ख ) 'एतेन यत्र कुन्तकेन भक्तावन्त वितो ध्वनिस्तदपि प्रत्याख्यातम् ।। ( ग ) 'माधुर्य सुकुमाराभिधमोजो विचित्राभिधं तदुभयमित्रत्वसम्भवं मध्यम नाम मार्ग केऽपि बुधा कुत्तु (न्त) कादयोऽवदवुक्तपन्तः । यदाहुः- . सन्ति तत्र त्रयो मार्गाः कविप्रस्थानहेतवः । सुकुमारो विचित्रश्च मध्यमश्चोभयात्मकः ॥२ निश्चय ही इन ग्रंथकारों में प्राचीनतम महिमभट्ट हैं जिसको स्वीकार करने में विद्वानों को कोई आपत्ति नहीं है। और इसे भी स्वीकार करने में विद्वानों में दो मत नहीं हैं कि कुन्तक महिमभट्ट के पूर्ववर्ती थे । कुन्तक तथा अभिनवगुप्त कुन्तक और अभिनवगुप में कौन पूर्ववतीं था और कौन परवर्ती, इस विषय में विद्वानों में बड़ा मतभेद है जब कि कुन्तक के कालनिर्धारण का इससे घनिष्ट सम्बन्ध है। अतः इस समस्या को सुलझाना परमावश्यक है। डॉ. मुकर्जी तथा डॉ. लाहिरो ने कुन्तक को अभिनव का पूर्ववर्ती स्वीकार किया है और यह माना है कि अभिनव कुन्तक के 'वकोक्तिजिवित' से भलोभाँति परिचित थे और अच्छी तरह जानते हुए उन्होंने भरत के लक्षण की कुन्तक की वक्रोक्ति के साथ समानता सिद्ध का। १. व्यक्तिविवेक २।२९ । २. एकावली पृ० ५१ । ३. अलं० महो०, पृ० २०१-२०२ । ४. डॉ लाहिरी का कथन है The terms expressions used by Abhinava are undoubtedly those of Kuntaka and this makes it highly probable that the Vakroktijīvita appeared earlier than the Abhinava. bharati and Abhinava quite consciously identified ( Bharata's) Laksana with Kuntaka's Vakrokti. 'Concept of Riti and Guna'-P. 19. डॉ० मुकजी का निबन्ध हमें प्राप्त नहीं हो सका। अतः उनके तर्कों के विषय में कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता। डॉ. काणे का कथन 'Dr. Mookerji in B.C. Law Vol. I at p. 183 says the same thing what Dr. Lahiri said." H. S. P.-235. [Contd.]
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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