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________________ पक्राक्तजीवितम् और जैसे उत्तररामचरित में विशाल गर्भ के अतिशय से पीडित देहवाली विदेहराज सुता सीता के विनोद हेतु प्राचीन राजचरित वाले चित्रों के प्रति इच्छा प्रदर्शित करते हुए राम ने निर्व्याज विजयी के विजम्भित होते हुए जम्भकास्त्रों को लक्ष्य करके 'अब सब प्रकार से ( ये जम्भकास्त्र ) तुम्हारी सन्तान के पास रहेंगे' ऐसा जो कहा था वह पञ्चम अङ्क में वीरव्यवहार में निपुण चन्द्र केतु के साथ क्षणभर के लिए समरक्रीडा की आकांक्षा करने वाले तथा उसमें विघ्न डालने के लिए कलकल शोर मचाने वाली सेनाओं को स्वाभाविक रूप से जीतने की उत्कण्ठा वाले जानकीनन्दन लव के जृम्भकास्त्रव्यापार के द्वारा किसी अपूर्व उपकार को उत्पन्न करता है जैसे कि वहाँ ( उत्तररामचरित पंचम अङ्क में )। लवः-भवतु जम्भकास्त्रेण तावत्सैन्यानि स्तम्भयामि | इति । सुमन्त्रः (ससम्भ्रमम्)-वत्स, कुमारेणानेन जम्भकास्त्रमभिमन्त्रितम् । लव -होगा । तब तक जृम्भकास्त्र के द्वारा सेनाओं को स्तब्ध किए देता हूँ। सुमन्त्र-(घबराहट के साथ ) बेटा, इस कुमार के द्वारा जृम्भकास्त्र का आवाहन किया गया है। . चन्द्रकेतुः-आय, कः सन्देहः । व्यतिकर इव भीमो वैद्युतस्तामसश्च __ प्रणिहितमपि चक्षुर्घस्तमुक्तं हिनस्ति । अभिलिखितमिवैतत्सैन्यमस्पन्दमास्ते. नियतमजितवीर्य जृम्भते जम्भकास्त्रम् ।। १३।। चन्द्रकेतु-श्रीमाम् जी, इसमें क्या सन्देह है उसी ओर पूरी तरह लगी हुई और काबू में आकर छूट गई हुई आँख को अन्धकार और बिजुली के भयङ्कर सम्पर्क-सा दुःख दे रहा है। और फिर यह सेना उत्कीर्ण सी निश्चेष्ट हो उठी है। यह निश्चित है कि ( यह ) अजेय शक्ति वाला जृम्भकास्त्र ही उद्दीप्त हो रहा है ॥ १३ ॥ आश्वयम पातालोदरकुञ्जपुञ्जिततमःश्यामैनभोज़म्भकै. रन्तःप्रस्फुरदारकूट कपिलज्योतिर्वलद्दीप्तिभिः । कल्पाक्षेपकठोरभैरवमरुद्वयस्तैरवस्तीर्यते नीलाम्भोदतडित्कडारकुहरैर्विन्ध्याद्रिकूटैरिव ॥ १४ ॥ आश्चर्य है !!! पाताल के भीतरी झुरमुटों में एकत्र अन्धकार की तरह काले और खूब तपा दिए गए हुए व चमकते हुए पीतल की कपिल ज्योति की तरह जलती शिवानों पा
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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