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________________ ४०० वक्रोक्तिजीवितम् वर्णनीयस्य केनापि विशेषेण विभावना । स्वकारणपरित्यागपूर्वकं कान्तिसिद्धये ॥ ४०॥ प्रस्तुतपदार्थ के सौन्दर्य की निष्पत्ति के लिए, अपने कारण का परित्याग करके किसी विशेष ( रूपान्तर ) के कारण विभावना अलङ्कार होता है । एवं स्वरूपप्रतिषेधवैचित्र्यच्छायातिशयमलङ्करणमभिधाय कारण. प्रतिषेधोत्तेजितातिशयमभिधत्ते-स्वकारणेत्यादि । वर्णनीयस्य प्रस्तुतस्यार्थस्य विशेषेण केनाप्यलौकिकेन रूपान्तरेण विभावनेत्यलकृतिरभिधीयते | "कथम्-स्वकारणपरित्यागपूर्वकम् । तस्य विशेषस्य स्वमा त्मीयं कारणं यन्निमित्तं तस्य परित्यागः प्रहाणं पूर्व प्रथमं यत्र । तत्कृत्वेत्यर्थः । किमर्थम्- कान्ति सिद्धये शोभानिष्पत्तये | तदिदमुक्तम्भवतियया लोकोत्तरविशेषविशिष्टता वर्णनीयता नीयते । यथा-- इस प्रकार स्वरूप के निषेध की विचित्रता के सौन्दर्य के कारण उत्कर्ष वाले ( आक्षेप ) अलङ्कार का प्रतिपादन कर, कारण के निषेध से उन्मीलित उत्कर्ष वाले (विभावना अलङ्कार ) का प्रतिपादन करते हैं-स्वकारणेत्यादि ( कारिका के द्वारा) वर्णनीय अर्थात् प्रस्तुत पदार्थ के विशेष अर्थात् किसी अलौकिक रूपान्तर के कारण 'विभावना' यह अलङ्कार कहा जाता है।..... कैसे ?-अपने कारण के परित्यागपूर्वक । उस विशेष का जो अपना कारण अर्थात् हेतु है उसका परित्याग अर्थात् उत्सर्ग पूर्व अर्थात् पहला होता है अर्थात् उस कारण का परित्याग करके । किस लिए ? कान्ति की सिद्धि अर्थात् सौन्दर्य की निष्पत्ति के लिए । तो कहने का आशय यह होता है कि-जिसके द्वारा अलौकिक विशेष की विशेषता वर्णन का विषय बनाई जाती है । जैसे असम्भृतं मण्डनमङ्गयष्टेरनासवाख्यं करणं मदस्य । कामस्य पुष्पव्यतिरिक्तमस्त्रंबाल्यात्परं साऽथ वयः प्रपेदे॥१६४॥ इसके अनन्तर उस ( पार्वती ) ने बाल्यावस्था के बाद की यौवनावस्था को प्राप्त किया जो कि अङ्गयष्टि का अनाहार्य अलङ्कार हुआ करता है, जो बिना १. यद्यपि डॉ० डे के ही अनुसार मैंने कारिका को मल में उद्धृत किया है। परन्तु जैसा कि वृत्ति से स्पष्ट है कारिका का प्रारम्भ 'स्वकारण' इत्यादि से होता है। अतः कारिका की पूर्वापर पतियों का क्रम परिवर्तन कर यदि इस प्रकार रखा जाय तो अधिक उचित होगा । कि स्वकारणपरित्यागपूर्वकं कान्तिसिद्धये । वर्णनीयस्य केनापि विशेषेण विभावना ॥
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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