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________________ ३९२ वक्रोक्तिजीवितम् स्कन्ध ( तने ) वाला, सीधा, सौ से रहित स्थिर एवं तमाम बड़े बड़े फलों वाला एवं उन्नत यह वृक्ष उत्पन्न हुआ और हवा के द्वारा गिरा दिया गया । (यहाँ वृक्ष के अतिरिक्त महापुरुषपरक यह अर्थ भी प्रतीत होता है किविशाल कन्धे वाला, सीधा सादा, भृजङ्गता से रहित, धैर्यशाली, अनेकों आश्रितों को लाभ पहुंचाने वाला, समाज में साम्मान्य महापुरुष, उत्पन्न हुआ पर दुर्भाग्य से नीचे गिरा दिया गया। इसका कुन्तक खण्डन करते हैं कि ) ___ अत्र तरोमहापुरुषस्य च द्वयोरपि मुख्यत्वे महापुरुषपक्षे विशेष णानि सन्तीति विशेष्यविधायकं पदान्तरमभिधातव्यम् । यदि वा विशेषणेऽन्यथानुपपत्त्या प्रतीयमानतया विशेष्यं परिकल्प्यते तदेवंविधस्य कल्पनस्य स्फुरितं न किञ्चिदिति स्फुटमेव शोभाशून्यता। ___ यहाँ पर वृक्ष तथा महापुरुष दोनों के प्रधान होने पर महापुरुष पक्ष में विशेषण तो है इस लिए विशेष्य विधायक दूसरा पद भी कहना चाहिए क्योंकि विशेष्य महापुरुष रूप पद का बोध कराने वाला कोई पद उपात्त नहीं है।) अथवा यदि ( यह कहो कि) विशेषण के अन्यथा सङ्गत न होने के कारण प्रतीयमान रूप से विशेष्य की कल्पना कर ली जाती है इस प्रकार की कल्पना में कोई तत्त्व नहीं है अतः यहाँ सौन्दर्यहीनता स्पष्ट ही है। इस प्रकार भामहप्रदत्त समासोक्ति के उद्धरण का विवेचन कर उमकी अलङ्कारान्तररूप से शोभाशून्यता का प्रतिपादन कर कुन्तक 'अनुरागवती. सन्ध्या' आदि श्लोक को उद्धृत कर उसका विवेचन प्रस्तुत करते हैं, जिसमें भामह के अनुसार समासोक्ति है। पर इसमें इन्होंने किस प्रकार से इसकी शोभाशून्यता का प्रतिपादन किया है वृत्ति की अस्पष्टता के कारण कह सकना कठिन है । श्लोक इस प्रकार है अनुरागवती सन्ध्या दिवसस्तत्पुरःसरः। अहो दैवगतिः कीहक न तथापि समागमः ।। १५३ ।। सन्ध्या ( नायिका ) अनुरागवती है और दिवस ( नायक ) उसके आगेआगे चल रहा है, अहो देव की गति कैसी है ? कि फिर भी दोनों का समागम नहीं हो रहा है ।। १५३ ॥ इस प्रकार समासोक्ति का प्रकरण समाप्त कर कुन्तक सहोक्ति अलङ्कार का विवेचन प्रस्तुत करते हैं । वे पहले भामहकृत सहोक्ति के लक्षण एवं उदाहरण को उधृत करते हैं तथा उसका विवेचन कर उसका खण्डन कर देते हैं। वे कहते हैं कि जिस प्रकार भामह ने सहोक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया है उसमें परस्पर
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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