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________________ तृतीयोम्मेषः - ३८७ और स्खलिता का विछल पड़ी हुई, पतिता का गिर पड़ी हुई और, सर्वाबलानां का सारी स्त्रियों के लिए, अर्थ लिया जायगा।) ॥ १४६ ॥ डा० डे के अनुसार सम्भवतः 'असत्यभूत श्लेष' यहाँ गोपराग शब्द में है क्योंकि 'गोः परागः' एक वास्तविक पदार्थ नहीं है अपितु काल्पनिक है। इस प्रकार श्लेष अलङ्कार का विवेचन करने के अनन्तर कुन्तक व्यतिरेक अलङ्कार का विवेचन प्रस्तुत करते हैं सति तच्छब्दवाच्यत्वे धर्मसाम्येऽन्यथास्थितेः। व्यतिरेचनमन्यस्मात् प्रस्तुतोत्कर्षसिद्धये ॥ ३३ ॥ शाब्दः प्रतीयमानो वा व्यतिरेकोऽभिधीयते ॥ ३४॥ श्लेषहेतुक शब्दवाच्य होने पर और धर्म साम्य के होने पर उपमान से प्रस्तुत के उत्कर्ष की सिद्धि के लिए अथवा उपमेय अर्थात् प्रस्तुत से उपमान के उत्कर्ष को सिद्धि के लिए और तरह से स्थिति प्राप्त करने वाले ( उपमान या उपमेय ) से अतिशायी दिखाना व्यतिरेक कहलाता है। यह शाब्द और प्रतीयमान दो प्रकार का होता है ।। ३२ ॥ ___ एवं श्लेषममिधाय साम्यैकनिबन्धनत्वादुक्तरूपश्लेषकारणं व्यतिरेकमभिधत्ते-सतीत्यादि । तच्छब्दवाच्यत्वे, स चासौ शब्दश्चेति विगृह्य, तच्छब्दशक्त्या श्लेषनिमित्तभूतः शब्दः परामृश्यते । तस्य वाच्यत्वेऽभिधेयत्वे मति विद्यमाने | धर्मसाम्ये सत्यपि परस्परस्पन्दसादृश्ये विद्यमाने । तथाविधशब्दवाच्यत्वस्य धर्मसाम्यस्य चोभयनित्वादुभयोः प्रकृतत्वात् प्रस्तुताप्रस्तुतयोरेव तयोर्धर्मादेकस्य यथारुचि केनापि विवक्षितपदार्थान्तरेण अन्यथास्थितेरतथाभावेनावस्थितेः व्यतिरेचनं पृथक्करणम् । (कस्मात् ) अन्यस्माद् उपमेयस्योपमानादुपमानस्य वा तस्मात् । स व्यतिरेकनामालङ्कारोऽभिधीयते कथ्यते । किमर्थम् ~प्रस्तुतात्कषसिद्धये। प्रस्तुतस्य वर्ण्यमानस्य वृत्तेश्छायातिशयनिष्यत्तये । स च द्विविधः सम्भवति शब्दः प्रतोयमाना वा। शाब्दः कविप्रवाहप्रसिद्धः तत्समर्पणसमर्थाभिधानेनामिधियमानः । प्रतीयमानो वाक्यार्थसामर्थ्यमात्रावबोध्यः । ___ इस प्रकार श्लेष को बताकर सादृश्यमात्रमूलक होने के नाते उक्त स्वरूप श्लेष के कारण वाले व्यतिरेक को बताते हैं-सतीत्यादि ( कारिका के द्वारा) तच्छन्दवाच्यल्वे इस पद में 'वही तद् पद वाच्य है और वही शब्द है' इस प्रकार कर्मधारय विग्रह करके अर्थ ग्रहन किया जायगा । तच्छन्द शक्ति के
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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