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________________ ३६४ वक्रोक्तिजीवितम् प्रतिपादित करते हैं-अर्थ एवं शब्द की सामर्थ्य से - आक्षिप्त हो गये अपने अर्थ वाले उन्हीं प्रयुक्त किए जाने वाले ( इवादि के द्वारा ) अथवा गम्यवृत्ति बाले इबादि के द्वारा। सम्भावनानुमानोत्प्रेक्षोदाहरणं ( यथा) आपीडलोभादुपकर्णमेत्य प्रत्याहितः पांशुयुतद्विरेफैः । अमृष्यमाणेन महीपतीनां सम्मोइमन्त्रो मकरध्वजेन ॥ ५ ॥ सम्भावना के द्वारा किए गए अनुमान से उत्प्रेक्षा का उदाहरण जैसे शिरोदाम के लोभ से कानों के पास आकर मकरन्दसंवलित भ्रमरों के माध्यम से क्षमा न करते हुए कामदेव के द्वारा राजाओं के ( कानों में ) वशीकरण मन्त्र निक्षिप्त कर दिया गया है । काल्पनिकसादृश्योदाहरणं ( यथा) राशीभूतः प्रतिदिनमिव त्र्यम्बकस्याट्टहासः ।। ६६॥ . यथा वा निर्मोकमुक्तिरिव गगनोरगस्य इत्यादि ॥ १७ ॥ काल्पनिक सादृश्य ( से की गई उत्प्रेक्षा ) का उदाहरण जैसे मानों शिव जी का दैनंदिन अट्टहास पुंजीभूत हो उठा हो । अथवा जैसे आकाश रूपी सर्प के केंचुलपरित्याग सा । इत्यादि। इसके बाद वास्तवसादृश्योत्प्रेक्षा के उदाहरण रूप में ग्रन्थकार ने एक पाकृत श्लोक को उद्धृत किया है जो कि पाण्डुलिपि के अत्यन्त भ्रष्ट होने के कारण पढ़ा नहीं जा सका । उसका दूसरा उदाहरण इस प्रकार हैंवास्तवसादृश्योदाहरणं ( यथा)उत्फुल्लचामकुसुमस्तबकेन नम्रा येयं धुता रुचिरचूतलता मृगाच्या । शके न वा विरहिणीमृदुमर्दनस्य मारस्य तार्जितमिदं प्रति पुष्पचापम् ॥ १८ ॥ वास्तविक सादृश्य ( से की गई उत्प्रेक्षा ) का उदाहरण जैसे मृगनयनी ने जो विकसित सुन्दर फूलों के गुच्छे से झुकी हुई इस मुन्दर आम्रलता को हिला दिया है, मैं ऐसा सोचता हूँ कहीं वियोगिनियों का मृदु मर्दन करने वाले कामदेव की प्रत्येक पुष्प के धनुष की तर्जना तो नहीं हैं। इसके बाद ग्रन्थकार ने 'उभयोदाहरण' के रूप में भी एक प्राकृतश्लोक को उदृत किया है जो कि पाण्डुलिपि की अस्पष्टता के कारण पड़ा नहीं जा सका।
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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